आज भी वह सफर याद है। दिल्ली से गोरखपुर के लिए ट्रेन में चढ़ते समय सोचा नहीं था कि मैं ऐसा सफर करने जा रहा हूं जिसकी यादें जीवन भर गुदगुदा जाएंगी। रात से सुबह तक का यह सफर कब आंखों ही आंखों में पार हो गया, पता ही नहीं चला। मन बस यही कर रहा था कि ट्रेन चलते जाए और हम दोनों सफर करते रहें। चलिए इस खूबसूरत कहानी का हिस्सा आप भी बनिए। शायद आप भी कभी ऐसे किसी चेहरे से टकराए होंगे तो आपको भी वह सफर खूब याद आएगा।

उस आवाज ने बेकरार कर दिया

तो हुआ यूं कि मैं जैसे ही अपने कोच में पहुंचा वहां मेरी सीट पर एक आंटी बैठी हुई थीं। वह नीचे वाली सीट थी। मैं बैग रख रहा था तभी एक खनकती आवाज कानों में पड़ी। excuse me…क्या आप ये बर्थ मेरी मम्मी को दे देंगे..प्लीज। मैं आती आवाज तक पहुंचा तो वहां एक लड़की थी। उम्र वही हम उम्र। अब मेरी उम्र मत पूछने लगिए। कहानी में दिलचस्पी लीजिए।

आरएसी सीट होने के कारण हुआ ऐसा कि…

अब लड़की ने कह दिया तो भला एक लड़का उसे कैसे मना कर सकता है। वैसे तो सच्चाई यह भी है कि अगर आंटी ने भी यह कह दिया होता तो मैं मना नहीं कर पाता। मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं मैं उनकी सीट पर चला जाता हूं। पर, पता चला कि उनकी सीट नहीं है। आरएसी होने के कारण उनकी और बेटी की एक ही सीट थी।

ट्रेन चल पड़ी, अब एक सीट के हम दो हिस्सेदार थे

मतलब यह हुआ कि एक लड़की के कारण मेरी सीट चली गई थी और अब मैं खिड़की वाली सीट पर उस लड़की के साथ आधा का हिस्सेदार था। ट्रेन चल पड़ी। अब हम दोनों आमने-सामने थे। खिड़की की सीट से वह अपनी मां से बात कर रही थी। उसकी आधी सीट से मैं उसे देखे जा रहा था। बातें तो मुझे भी बहुत करनी थी। लेकिन कैसे शुरू करूं।

गोखपुरिया लौंडा खुलते-खुलते खुलते हैं लड़कियों से

यूं तो मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा था और लड़कियों से खुलने में कोई हिचक नहीं थी। लेकिन फिर भी गोरखपुरिया लौंडा खुलते खुलते ही खुलता है। खासकर लड़कियों के सामने। ट्रेन सरपट भाग रही थी। मेरी आंखें सरपट उस लड़की का पीछा कर रही थीं। मेरा मन बात करने का बहाना ढूढ़ रहा था, इस बीच लड़की के दिमाग में क्या चल रहा था, मैं उससे अनजान था।

उसके पीछे मैं भी बाथरूम जाना चाहता था…

आंटी जी धीरे-धीरे नींद की आगोश में जा रही थीं। वह उठी और बाथरूम की तरफ गई। मैं बैठा रहा। मन कर रहा था कि मैं भी पीछे जाऊं। शायद इसी बहाने उससे बातचीत शुरू कर सकूं। कई बार उठने की कोशिश भी की। पर, उठ नहीं पाया। तब तक वह लौट चुकी थी। उसने मोबाइल में आंखें गड़ा लीं। अब मैं उठा बाथरूम की तरफ गया। मैं यही सोच रहा था कि वह आ जाए। बाथरूम से निकलकर दरवाजे के पास कुछ देर खड़ा रहा। मन और आंखें उसी सीट पर थीं।

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उसने छुआ तो ऐसे लगा मानो पूरे शरीर में करंट…


जैसे ही सीट की तरफ बढ़ने को हुआ किसी का हाथ मेरे हाथ पर लगा। पूरे शरीर में करंट दौड़ गया। यह वही लड़की थी। क्या हुआ…यहां क्यों खड़े हो…सवाल तो मैं सुन रहा था..जवाब भी देना चाहता था लेकिन बोल नहीं पा रहा था। यह क्या हो रहा है मुझे। कुछ सेकेंड अवाक था। शायद इसलिए कि मैंने सोचा नहीं था कि बातचीत का सिलसिला यूं शुरू होगा।

…और मैं पीछे-पीछे हो लिया

वो खिलखिलाकर हंसी। सीट पर नहीं चलोगे क्या…रात भर यहीं खड़े रहने का इरादा है। अरे तुम आधी सीट ले सकते हो। अब तक मैं सहज हो गया था। अरे नहीं…ऐसा कुछ नहीं है। बस आ ही रहा था। ओह…ये बात है तो ठीक है चलो। वो चल दी…मैं उसे रोक लेना चाहता था। मैं चाहता था कि कहूं कि कुछ देर यहीं रूको ना…कुछ और बातें करें…। मैं उसका हाथ पकड़ लेना चाहता था। उसे वहीं दरवाजे के पास बैठाना चाहता था। ट्रेन की रफ्तार के साथ उसके साथ बातों की रफ्तार बढ़ाना चाहता था…वह अपनी सीट पर चल दी थी….मैं पीछे-पीछे हो लिया था…

(आगे इस कहानी में जानेंगे कि पूरी रात कैसे-कैसे करवट ली…हम दोनों की बातों में…छुअन में…स्पर्श में…पढ़ते रहिए इस पूरी सीरीज को…कहानी पसंद आए तो कमेंट करके जरूर बताइए)

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