जितने लम्बे समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्र लगाती है, उसे ‘सौर वर्ष’ कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना ‘क्रान्ति चक्र’ कहलाता है। इस परिधि को बारह भागों में बांट कर बारह राशियाँ बनी हैं। इन राशियों का नामकरण बारह नक्षत्रों के अनुरूप हुआ है। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश ‘संक्रान्ति’ कहलाता है।

पृथ्वी का ‘मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर संक्रान्ति’ कहलाता है। सूर्य के ‘उत्तरायण’ होने को ‘मकर संक्रान्ति’ तथा ‘दक्षिणायण’ तथा माघ से आषाढ़ तक दक्षिण के अन्तिम भाग से उत्तर के अन्तिम भाग तक जाना ‘उत्तरायण’ है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं। प्रकाश बढ़ जाता है। रातें दिन की अपेक्षा छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में इसके ठीक विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार ‘उत्तरायण’ की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन’ देवताओं की रात्रि है। वैदिक काल में ‘उत्तरायण’ को ‘देवयान” तथा ‘दक्षिणायन’ के ‘पितृयान’ कहा जाता था।

‘मकर संक्रान्ति’ के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए धरा पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्मा पुरुष शरीर छोड़ कर स्वर्गादिक लोकों में प्रवेश करते हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना गया है। धर्मशास्त्रों के कथनानुसार इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अन्यतम महत्व है। इस अवसर पर दिया हुआ दान पुर्नजन्म होने पर सौगुणा होकर प्राप्त होता है।

यह पर्व भारत के प्रत्येक कोने में मनाया जाता है। इस पर्व की पूजन-पद्धति में शीत की अतिशयता से छुटकारा पाने का विधान अधिक है इस पर्व पर तिल का विशेष महत्व माना गया। तिल खाना तथा तिल बांटना इस पर्व की महानता है। शीत के निवारण के लिए तिल, तेल तथा तूल का महत्व अधिक है। तिल मिश्रित जल से स्नान तिल-उबटन, तिल-हवन, तिल-भोजन तथा तिल-दान सभी पापनाशक प्रयोग हैं। इसीलिए इस दिन तिल, गुड़ तथा चीनी मिले लड्डू खाने तथा दान देने का अपार महत्व है।

हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब में मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व यह त्यौहार ‘लोहड़ी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल अन्धेरा होते ही होली के समान आग जला कर तिल, गुड़, चावल तथा उबले हुए मक्का से अग्नि-पूजन करके आहुति डाली जाती है। इस सामग्री को ‘तिल-चौली’ कहते हैं।

उत्तर प्रदेश में इस उत्सव को ‘खिचड़ी’ कहते हैं। इस दिन खिचड़ी खाने तथा खिचड़ी-तिल का दान देने का विशेष महत्व है । महाराष्ट्र में इस दिन ‘ताल-गूल’ नामक हलवे के बाँटने की प्रथा है। इस दिन महिला समाज परस्पर गुड़, तिल, रोली तथा हल्दी बाँटती हैं। बंगाल में भी इस दिन स्नान करके ‘तिल-दान’ की विशेष प्रथा का प्रचलन है। प्राचीन रोम समाज में इस दिन खजूर, अंजीर तथा शहद बांटने की प्रथा का उल्लेख मिलता है। प्राचीन ग्रीक के लोग वर-वधू की संतान-वृद्धि के लिए तिलों का पकवान बांटते थे। इस दिन कम्बल तता शुद्ध घी का दान महान पुण्य माना जाता है। इस अवसर पर ‘गंगा-सागर’ में बहुत बड़ा मेला लगता है। कहते हैं कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।

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