आज भी मुझे सपने में ऐसा लगता है जैसे मैं एग्जाम हॉल में हूं और मैथ के पेपर में फेल हो रहा हूं। मुझे कुछ आ नहीं रहा है। मैं दोस्तों से गुहार लगा रहा हूं प्लीज मेरी मदद करो। हाथ पांव जोड़ रहा हूं। जो टीचर हैं उनके पैर पड़ रहा हूं। कोई मदद नहीं कर रहे हैं और अचानक घंटी बज जाती है। मेरे हाथ पांव फूल जाते हैं। सांसें तेज चलने लगती हैं।

अचानक खुद को पसीने से तर बतर पाता हूं। अचानक नींद खुलती है और पाता हूं कि सपने में था। कुछ देर के लिए अवाक हो जाता हूं और फिर तसल्ली होती है चलो सपने में था। मैथ का एग्जाम जिंदगी में आगे नहीं देना है।

पापा के दबाव में IIT का फॉर्म भरा

यह सपना अक्सर आता है मुझे। वास्तव में मैं मैथ से डरता था। शुरू से ही। मुझे मैथ पसंद ही नहीं था। मैं किसी भी तरह से मैथ में पास हुआ था। सच कहूं तो एक दोस्त की मदद से पासिंग मार्क्स आए थे। मैं पिता जी के दबाव में उसी साल आईआईटी का फॉर्म भर दिया था।

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IIT का एक्जाम और मैं सिनेमाघर में था

आईआईटी के एग्जाम के समय मैं सिनेमाघर में फिल्म देख रहा था। क्योंकि मैंने दबाव में फॉर्म तो भर दिया था लेकिन मुझे मालूम था कि मैं आईआईटी क्या किसी छोटे इंजीनियरिंग कॉलेज का ऐंट्रेंस तक पास नहीं कर सकता। जिसे मैथ की किताब खोलते ही सब कुछ ऊपर से उड़ने लगे वो आईआईटी में कैसे जाएगा भला।

पापा को समाज में बदनामी का डर था

लेकिन पापा के नाक का सवाल था। समाज में बदनामी का डर था। उनके स्टेटस पर आंच नहीं आना चाहिए इसलिए बेटे को इंजीनियर बनना ही था। वह बड़े फक्र से अपने दोस्तों से कहते थे कि बेटे कोे मैं कोटा भेजने जा रहा हूं कोचिंग के लिए। जब वह यह कहते तो मैं डर से अंदर ही अंदर कांप जाता। लेकिन मैं मना नहीं कर पाया।

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पापा पैसे भेजते और यहां दारू-सिगरेट चलता

जैसे-तैसे बेमन मैं कोटा चला गया। वहां कोचिंग में तो जाता लेकिन कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता। मैथ और फिजिक्स से दुश्मनी थी और अब यारी करनी थी कैसे हो पाता। नहीं हो रहा था…यार नहीं होता है। किसी से भी पूछ लो। पापा के नाक के लिए क्या कर सकता हूं। रूकना था तो रूका। पैसे आते तो फिल्मों पर खर्च होने लगे। धीरे-धीरे तनाव भी होने लगा तो सिगरेट की लत लग गई। मेरे जैसे कई ऐसे लवंडे पहुंचे थे जिनका मैथ और फिजिक्स से कोई नाता नहीं था। कोई मां का सपना, कोई बाप का नाक बचाने आया था। इनके साथ दारू पार्टी चलने लगी क्योंकि कोई काम ही नहीं था।

लैपटॉप लिया पढ़ने के लिए, ब्लू फिल्में चलती रहीं

पैसे आते और हमारा डिमांड बढ़ जाता। मालूम था कि नाक बचाने के लिए और पैसे आएंगे। लैपटॉप खरीद लिया गया पढ़ने के लिए लेकिन उस पर सिर्फ ब्लू फिल्में चलती थीं। कोचिंग चलते रहा दो साल तक कुछ नहीं हुआ। तीसरे साल थककर खुद पिता ने अपनी नाक कटवा दी। वापस बुला लिया। निकम्मे और तमाम तरह की गालियों से स्वागत हुआ लेकिन घर पर नहीं रहना था। कहीं दूर जाना था।

फिर दिल्ली पहुंचा और अपने मन का कर पाया

यहां से मैं अपने का कर पाया। दिल्ली चला आया। पिताजी ने कहा, समझ लेना अब मैं तुम्हारे लिए मर गया हूं। अभी भी उन्हें समाज की ही पड़ी थी। खैर, दिल्ली में अपने पसंद के आर्ट सब्जेक्ट में एडमिशन लिया। फिर थिएटर शुरू किया। कविताएं लिखने लगा। ब्लॉग लिखने लगा। मजा आने लगाा। अब मैं क्या करता हूं इसे आपको जानना जरूरी नहीं है।

आज पापा भी हैं खुश और हम भी खुश

बस इतना समझ लीजिए। अब मैं भी खुश हूं। एक अच्छी खासी कमाई कर रहा हूं। पापा भी खुश हूं। पिछले महीने ही दिल्ली में फ्लैट लिया हूं। पापा आए थे गले लगाए और बोले गलती हो गई मुझसे। गले लगाकर रुंआसे हो गए। लेकिन मेरे बच्चे को देखकर कहा, इसके साथ वह मत करना जैसे मैंने तुम्हारे साथ किया था। मैं भी पापा को और कस के गले लगा लिया। जादू की झप्पी चल रही थी। मां और मेरी पत्नी मुस्कुरा रही थीं। मेरा बेटा शायद समझ रहा था दुनिया अब और खूबसूरत हो चली है।

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