चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वर्ष प्रतिपदा कहलाती है। इस दिन नया वर्ष प्रारम्भ होता है। नव वर्ष मंगलमय हो, इसके लिए घर के ऊपर गेरुए रंग की ध्वजा फहराएँ। वन्दनवार लगाकर घर को सजावें। स्नान करके तथा शुद्ध वस्त्र धारण करके देवता, ब्राह्मण और गुरु की पूजा करें। स्त्रियाँ तथा बालक सभी सुन्दर वस्त्राभूषण पहनें। ब्राह्मण के मुख से पचांग से नव वर्ष का फल सुनें। ब्राह्मण को दक्षिणा दें और पक्वान्न भोजन कराएँ। यथाशक्ति दान भी दें। क्रोध न करें। अशुभ और अमंगल न बोलें, न सुनें और न देखें। सारा दिन आनन्दपूर्वक भजन-कीर्तन-गीता आदि गाकर बिताएँ। सम्बन्धियों और मित्रों को अपने घर बुलाकर उनका यथोचित आदर-सत्कार करें। नूतन वर्षारम्भ के पहले दिन जो लोग अच्छा सोचते हैं, अच्छा बोलते हैं और अच्छा कहते हैं, उनका पूरा वर्ष सुखपूर्वक व्यतीत होता है। उनके दुःख-दारिद्रय का नाश होता है। धन-धान्य की वृद्धि होती है।

सभी सनातन धर्मी परिवारों को अपने घर में नए वर्ष का पचांग पहले ही लाकर रख लेना चाहिए। इससे वर्ष भर व्रतों, त्यौहारों, पर्वो, तिथियों आदि को देखा जा सकता है। थोड़ी पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ भी चाहें तो आसानी से पत्रा देखना सीख सकती हैं।

इस दिन ब्राह्मणों को पचांग का दान भी दिया जाता है। इसी दिन नवरात्र भी प्रारम्भ होते हैं। नवरात्रों में जगदम्बा भगवती दुर्गा देवी के पूजन का विशेष महत्व होता है। घर में देवी जी की मूर्ति न हो तो चौकी पर चित्र की स्थापना करके नौ दिन प्रातः और सायं पूजा-भोग और आरती करनी चाहिए। कुंआरी कन्याओं का पूजन प्रतिदिन न हो सके तो अष्टमी दिन नौ कन्याओं का पूजन करें। कन्याओं को मिष्ठान्न भोजन कराएँ और वस्त्र ओढ़ने को दें और दक्षिणा देकर विदा करें।

इन नवरात्रों की नवमी आनन्दकन्द भगवान् श्रीरामचन्द्र जी की जन्मतिथि रामनवमी है। राम-भक्त भाई-बहन इन नवरात्रों में नवाह्निक पारायण रामचरितमानस का पाठ करते हैं। आप अपनी श्रद्धा-भक्ति के अनुसार नवरात्रों में जो भी भजन-पूजन अथवा पाठ करेंगे, वह शीघ्र फलदायक होगा, ऐसा शास्त्र का कथन है।

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