October 5, 2024

शनि ग्रह के प्रकोप से मुक्ति पाने के लिए शनिवार का व्रत रखा जाता है। श्रावण माह से यह व्रत यदि आरम्भ किया जाए तो उसका विशेष फल होता है। व्रत करने शनि देव की पूजा होती है। पूजा में काले तिल, काला वस्त्र, लोहा, तेल आदि अवश्य होता है। इस व्रत से तमाम विघ्न-बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। पूजा के बाद कथा सुननी चाहिए

एक राजा था। उसने अपने राज्य में यह घोषणा कि दूर-दूर से सौदागर बाजार में माल बेचने आएँ तथा जिस सौदागर का माल नहीं बिकेगा उसे राजा स्वयं खरीद लेगा। सौदागर प्रसन्न हुए। जब किसी सौदागर का माल नहीं बिकता तो राजा के आदमी जाते तथा उसे उचित मूल्य दे कर सारा सामान खरीद लेते। एक दिन की बात है- – एक लोहार लोहे की शनिदेव की मूर्ति बना कर लाया। शनि की मूर्ति का कोई खरीददार नहीं आया। संध्या समय राजकर्मचारी आए। मूर्ति खरीदकर राजा के पास ले आए। राजा ने उसे आदर से अपने घर रखा। शनि देव के घर आ जाने से घर में रहने वाले अनेक देवी-देवता बड़े रुष्ट हुए। रात के अन्धेरे में राजा ने एक तेजमयी स्त्री को घर से निकलते देखा तो उससे राजा ने पूछा कि तुम कौन हो? तो नारी बोली – ‘मैं लक्ष्मी हूँ। तुम्हारे महलों में शनि का वास है। अतः मैं यहाँ नहीं रह सकती।’ राजा ने उसे रोका नहीं। कुछ समय बाद एक देव-पुरुष भी घर से बाहर जाने लगा तो राजा ने उससे भी पूछा कि तुम कौन हो? तो वह बोला- “मैं वैभव हूँ। सदा लक्ष्मी के साथ ही रहता हूँ। जब लक्ष्मी नहीं तो मैं भी नहीं। ” यह कर कह वह भी चला गया। राजा ने उसे भी नहीं रोका। इसी प्रकार धीरे-धीरे एक ही रात में धर्म, धैर्य, क्षमा, आदि अन्य सभी गुण भी एक-एक करके चले गए। राजा ने किसी से भी रुकने का आग्रह नहीं किया। अन्त में जब सत्य जाने लगा तथा राजा के पूछने पर उसने कहा जहाँ लक्ष्मी, वैभव, धर्म, धैर्य, क्षमा आदि का वास नहीं तो वहाँ मैं एक क्षण भी नहीं रुकना चाहता। तो राजा सत्य देव के पैरों में गिर कर कहने लगा—महाराज! आप कैसे जा सकते हैं आप के बल पर ही तो मैंने लक्ष्मी, वैभव, धर्म आदि सभी का तिरस्कार किया। आपको न छोड़ा है और न छोडूंगा। राजा का इतना आग्रह देख कर सत्य रुक गया। महल के बाहर सभी सत्य की राह देख रहे थे। उसे न आता देख धर्म बोला – “मैं सत्य के बिना नहीं रह सकता। मैं वापस जाता हूँ। धर्म के पीछे-पीछे दया, धैर्य, क्षमा, वैभव व लक्ष्मी सभी लौट आए। तथा राजा से कहने लगे कि तुम्हारे सत्य-प्रेम के कारण ही हमें लौटना पड़ा। तुमसा राजा दुःखी नहीं रह सकता। सत्य प्रेम के कारण लक्ष्मी व शनि एक ही स्थान पर रहने लगे।

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