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दोस्तों, आजकल सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड तेजी से चला है और यह ट्रेंड है ऑर्गेज्म पर बहस का। एक लेखिका हैं अणु शक्ति सिंह उन्होंने कहीं लिखा कि 70 फीसदी महिलाओं को यौन सुख अपने पति से नहीं मिल पाता है तो वह कहीं न कहीं तो इसे तलाशेंगी ही। नैतिकता सिर्फ पुरुषों के लिए ही क्यों है? अब इस पर बहस छिड़ गया है। कई पुरुषवादी सोच के लोगों ने इस पर कड़ी आपत्ति जता दी है और कह रहे हैं कि ये फेमिनस्ट महिलाएं तो हमेशा से चाहती हैं कि सेक्स फ्री हो जाए और बिना ब्रा के वे घूमें। चलिए पूरे बहस पर विस्तार से बात करते हैं।

70 फीसदी महिलाओं को चरम सुख बिस्तर पर नहीं मिलता है। Do Indian women have orgasms?

लेखिका के मुताबिक देश में पति लोग अपनी पत्नियों को बिस्तर पर पूरा सुख नहीं दे पा रहे हैं। orgasm नहीं मिलता। orgasm वह टर्म है जब महिला सेक्स के चरमोन्माद को प्राप्त करती हैं। लेकिन महिला लेखिका का कहना है कि 70 फीसदी महिलाओं को यह सुख नहीं मिलता है। ऐसे मेें उन्हें किसी और जगह जाना ही होगा। उनके कहने का तात्पर्य यह है कि अगर पति सेक्स से खुश नहीं कर पाएगा तो महिला को खुद की यौन संतुष्टि के लिए दूसरा विकल्प तलाशना होगा।

‘क्रांतिकारी जिज्जियां और फ्री सेक्स डिज़ाएर’: 70% Of Indian Women Do Not Orgasm During Sex

इस पर एक अन्य लेखिका उद्दण्ड मार्तण्ड मणि लिखती हैं, अपनी फेमिनिस्ट जिज्जी खुले में ब्रा सुखाने के लिए चली थी और चल चल कर ऑर्गेज्म तक आ गईं। बीच में कभी कभी ब्रा-लेस एडवेंचर, फ्री सेक्स डिज़ाएर, ब्रा स्ट्रैप्स एन्ड पीरियड स्टेन मेगा शोबिज़ टाइप के आइलैंड आते रहते हैं, जो किरान्तिकारी जिज्जियों की एनर्जी को बूस्ट करते रहते हैं, जिससे अपनी फेमिनिस्ट जिज्जियाँ पुरुषों और पुरुषवाद से बड़े तगड़े तरीके से लड़ती हैं। अगर जिज्जी ऐसे ही चलती रहीं तो एक दिन नैतिकता की सारी टोकरी औरतों के सिर से उतारकर पुरुषों के सिर पर पटक देगीं फिर जो औरतें पुरुषों के नीचे रह कर ऑर्गेज्म को महसूस तक नहीं कर पाती, वही दबी कुचली औरतें सभी पुरुषों के ऊपर बैठकर ऑर्गेज्म का भरपूर मज़ा लेगीं।

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‘जिज्जियों को बस छत पर ब्रा सुखानी है’

70% Of Indian Women Do Not Orgasm During Sex पर चली इस बहस पर ये लेखिका लिखती हैं, ‘लेकिन फेमिनिस्ट जिज्जियों के मज़े लेने के चक्कर में पड़ कर औरतों के जो बेसिक सामाजिक, पारिवारिक मुद्दे हैं… वो सब अब दम तोड़ चुके हैं। जिज्जियों को बस छत पर ब्रा सुखानी है और इंटरनेट पर फ्री पॉर्न को अपने बेडरूम में इम्प्लीमेंट करना है।
मुझे आजतक समझ नहीं आया… फेमिनिस्ट जिज्जियों का सारा फेमिनिस्म ब्रा, ब्रा स्ट्रैप, वर्जिनिटी, वजाइना, फ्री सेक्स और ऑर्गेज्म के आजू बाजू ही क्यों घूमता है? स्त्री विमर्श, आंदोलन, शोषण, आजादी, उन्मूलन आदि बहुत मुख्य मुद्दे हैं… पर फेमिनिस्ट जिज्जियाँ रेस के सभी हिन्डर्स पार करके स्त्री शरीर के कुछ विशेष अंगों की आजादी की माँग पर निशाना साध ही लेती हैं।’

‘पीरियड्स में बहते खून से कपड़ों पर अधिक फोकस’

‘गरीब, अनपढ़, मुख्य धारा से टूटी पिछड़ी औरतों को सेनेटरी नैपकीन के इस्तेमाल करने की जानकारी देने बारे में या मुहैय्या कराने पर इनका कोई आंदोलन नहीं होता है… बल्कि उल्टे जिज्जी का सारा फ़ोकस पीरियड्स में बहते खून से कपड़ों पर लगे धब्बों पर लड़कों को नॉर्मलाइज़ करने पर लगा रहता है। जबकि लड़कियों के हर महीने बहते पीरियड्स से लड़कों का कुछ लेना देना नहीं है।’

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‘…टाइट बूब्स को लड़के ताड़ रहे हैं’

ऐसे ही स्त्रियाँ ब्रा पहने या न पहनें… लड़कों को क्या ही फर्क़ पड़ता है? लेकिन फेमिनिस्म की मारी (सेंसर्ड शब्द) जिज्जियों को हर चीज़ से दिक्क़त है… ब्रा नहीं पहनती हैं तो उन्हें लगता है उनके फ्री बूब्स को लड़के ताड़ रहे हैं। ब्रा पहनती है तो उन्हें लगता है उनके टाइट बूब्स को लड़के ताड़ रहे हैं। छोटे और खुले कपड़े पहनने के बाद चाहती हैं… लड़के उन्हें देखें भी… और देखें भी न!

‘बिकनी में रहें या पूरी नंगी रहें’

‘फेमिनिस्ट जिज्जियाँ ब्रा के पक्ष या विपक्ष में आंदोलन करके स्वाभाविक प्राकृतिक विपरीत लिंग के आकर्षण को कैसे खत्म कर देगीं! यह समझ से परे है। औरतें बुर्क़े में रहें, बिकनी में रहें या पूरी नंगी रहें लेकिन पुरुषों में प्राकृतिक तौर पर स्त्री शरीर को लेकर जो जिज्ञासाएं या लालसाएं हैं वो कभी भी ख़त्म नहीं होगी… फिर चाहें फेमिनिस्ट जिज्जियाँ सिर पीट पीट के मर ही क्यों न जाएं!’

‘100% औरतें फ्री सेक्स या लिव इन को वरीयता दें’

‘अब आते हैं फेमिनिस्ट जिज्जियाँ नैतिकता का टोकरा औरतों के सिर से उतारकर क्यों फेंक देना चाहती हैं! क्यों चाहती हैं कि 100% औरतें फ्री सेक्स या लिव इन को वरीयता दें! क्यों सिगरेट, शराब, जुआ को नॉर्मलाइज़ करने के लिए मरी जा रही हैं! “Why should boys have all the fun” बोल बोलकर क्यों चाहती हैं कि हर औरत कपड़ों की तरह रोज रात को लड़के बदलकर सोये!… इसका सीधा सा उत्तर है, फेमिनिस्ट जिज्जियों के अंदर भरी हीनभावना, असुरक्षा की भावना। अपने बोल्ड अवतार और स्वभाव के चलते वो मुख्य समाज से कट चुकी हैं… वो जानती हैं जो लोग उनके मुंह पर उनसे अच्छी अच्छी बातें या उनकी बातों पर, उनकी जीवन शैली और फैसलों पर वाह वाह करते हैं… वही लोग उनके पीठ पीछे उनको गाली देकर बात करते हैं। लेकिन जब पूरे समाज की सारी औरतें उनके जैसी हो जायेगीं तो कौन उनको गाली देगा!’

‘वाह वाह से आह आह तक का सफ़र जल्दी पाने की चाहत’

‘बाक़ी नारीवाद के काटे फेसबुकिये पुरुषों से हमेशा दूर रहना चाहिए। पुरुषों में सबसे लम्पट यही पुरुष होते हैं… इनका व्यक्तित्व अति फेमिनिस्ट औरतों की तरह ही लिजलिजा और बदबूदार होता है। वाह वाह से आह आह तक का सफ़र यह लोग बहुत जल्दी पूरा करने की फ़िराक में रहते हैं।’

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(दोस्तों, यह मैटर सोशल मीडिया फेसबुक से लिया गया है। आर्गैज्म पर जो बहस चल रहा है उसमें दो लेखिकाओें के विचार को इसमें समाहित किया गया है। अगर आपका भी कोई विचार इस पर है तो आप लिख भेजिए हम उसे यहां पर प्रकाशित करेंगे।)

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