इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। ज्योतिष की मान्यता है कि सम्पूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमा षोडश कलाओं का होता है। इस दिन श्रीकृष्ण को कार्तिक स्नान करके कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के पुलिन पर होने वाली गोपियों के साथ रास रचाई थी।

इस दिन प्रातःकाल आराध्य देव को सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आसन, आचमन, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गो-दुग्ध से बनी खीर में घी तथा चीनी मिला कर पूरियों की रसोई सहित अर्द्धरात्रि के समय भगवान को भोग लगाना चाहिए। रात्रि जागरण करके भगवद् भजन करना चाहिए, चांद की रोशनी में सुई-धागा पिरोओ। पूर्ण चन्द्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर उसका पूजन करो। खीर से भरी थाली रात को खुली चाँदनी में रहने दो। दूसरे दिन उसका सबको प्रसाद दो तथा स्वयं खाओ। पूर्णिमा का व्रत करके कहानी सुननी चाहिए। कथा सुनते समय एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूँ, पत्ते के दोने में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाओ। टीका काढ़ो। गेहूँ के १३ दाने हाथ में लेकर कथा सुनो। फिर गेहूँ के गिलास पर हाथ कर मिश्राणी के पांव का स्पर्श करके गेहूँ का गिलास उसे दे दो। लोटे के जल का रात को चन्द्रमा को अर्घ्य दो।

विवाह होने के बाद पूर्णमासी के व्रत का नियम शरद् पूर्णिमा से ही लेना चाहिए। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही आरम्भ करना चाहिए।

कथा – एक साहूकार की दो पुत्रियाँ थीं। दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूर्ण व्रत करती पर छोटी अधूरा। छोटी बहन के जो भी सन्तान होती वह जन्म लेते ही मर जाती पर बड़ी बहन की सारी सन्तानें जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पंडितों को बुलाकर अपना व्रत बताया था कारण पूछा तो पंडितों ने कहा, कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी सन्तानें जीवित रहा करेंगी।

उसने वैसा ही किया। उसके लड़का हुआ पर वह भी शीघ्र ही मर गया। उसने उस लड़के को पीढ़े पर लेटाकर ऊपर कपड़ा ढक दिया। तब बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। बड़ी बहन के बैठने से ज्यों ही उसका घाघरा बच्चे से छुआ, वह रोने लगा। बड़ी बहन ने तब कहा – तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता। तब छोटी बहन बोली, “यह तो पहले ही मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं। तू पूरा करती है और मैं अधूरा जिसके दोष से मेरी सन्तानें मर जाती हैं। इसीलिए तेरे ही पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है। उसके बाद उसने नगर भर में पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

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