मोहनी एकादशी के बारे में पुराणों में एक कथा मिलती है। जो इस प्रकार है

एक राजा था। उसके कई पुत्र थे। पर एक पुत्र बड़ा दुराचारी था। जुआ खेलना, व्यभिचार करना, दुर्जन संग, बड़ों का अपमान आदि दुर्गुणों को पुतला था। पिता ने दुःखी होकर उसे घर से निकाल दिया। वन में भी वह लूटमार करता तथा जानवरों को मारकर खा जाता था। एक दिन पूर्व-जन्म संस्कार वश एक ऋषि के आश्रम में पहुँचा। ऋषि ने उसे देखते ही सब रहस्य जान लिया। सत्संगति के कारण राजपुत्र का हृदय परिवर्तन हुआ तो वह अपने पाप-कर्मों को याद कर पछताने लगा तब ऋषि ने उसे वैशाख शुक्ला एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से उसकी बुद्धि निर्मल हो गई। इसीलिए आज भी यह व्रत श्रद्धा के साथ किया जाता है।

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