दो साल लिव इन में रहने के बाद रश्मि और अंश को अब लगने लगा था कि वे सिर्फ एक-दूसरे को झेल रहे हैं..। अब उनके बीच पहले जैसा कुछ नहीं बचा। दोनों ने माना कि रिश्ते ज्यादा खराब हों इससे पहले दोनों को अलग हो जाना चाहिए। उन्होंने यह फैसला मनपसंद कैफे में अपनी पसंदीदा ब्लैक कॉफी पीते हुए की और तय किया कि जिस तरह उन्होंने अपने मिलने को सेलीब्रेट किया था, उसी तरह अपने बिछड़ने को भी सेलीब्रेट करेंगे। और हां, उसके बाद वे दोनों कभी भी एक पल के लिए भी एक-दूसरे की जिंदगी में दखल नहीं देंगे।
उसके होठों पर अपने नरम होंठ रख दिया उसने
आज उनके रिश्ते का अंतिम दिन था। दोनों को शाम में मिलना था। अंश को समय और जगह के बारे में रश्मि को जानकारी देनी थी जहां वे अपने बिछड़ने के इस पल को सेलीब्रेट करने वाले थे। अंश आज देर तक सोया रहा। नींद खुली तो सुबह के आठ बजे रहे थे। मतलब यह कि आज रश्मि उसे जगाने नहीं आई थी..। हर रोज उसकी सुबह उसकी पसंदीदा कॉफी के साथ रश्मि के बांहों में होती। रश्मि को उसे जगाने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ती। वो उसके सिर के पास बैठकर उसके बालों में उंगलियां घूमातीं। उसके होठों पर अपने नरम होठ रख देती और हौले से किस कर लेती और फिर गालों पर हल्की थपकी देती। धीरे-धीरे अंश नींद की दुनिया से बाहर आता और खुद को सिकोड़ता हुआ उसकी बांहों में समा जाता और फिर रश्मि उसके हाथों में कॉफी थमा देती। वो कॉफी पीते हुए रश्मि को निहारने लगता और रश्मि अक्सर इस वक्त असहज हो जाती।
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हल्की अंगड़ाई लेकर वो नीचे उतरी, बदन टूट रहा था
ओह..तो जाने से पहले मैडम ने एक कॉफी तक नहीं पूछा..। अंश ने खुद से हल्की अंगड़ाई लेकर वो नीचे उतरा, बदन टूट रहा था। लॉन तक गया। रश्मि-रश्मि की दो बार आवाज लगाई…शायद रश्मि जा चुकी है, उसने खुद से कहा..। फ्रेश होने के बाद अंश भी ऑफिस के लिए निकल गया। लंच टाइम में उसने रश्मि को फोन किया और बताया कि वे दोनों शाम हजतरगंज में मिलेंगे। कुछ देर वहां गुजारने के बाद वे मरीन ड्राइव चले जाएंगे, जहां गपशप करेंगे। फिर लौटकर रूम पर केक काटेंगे और फिर रात 12 बजे एक-दूसरे से हमेशा के लिए अलविदा कहेंगे। अंश ने मोबाइल पर ही यह शिकायत भी की कि उसने अंतिम दिन सुबह कॉफी क्यूं नहीं दी उसे और मुआवजे के बतौर रात में जाने से पहले रश्मि उसकी पसंदीदा कॉफी अंतिम बार उसके लिए बनाएगी, ये भी तय कार्यक्रम में पूरे हक से अंश ने जोड़ दिया..। रश्मि ने उसे बदमाश कहा और शाम को मिलते हैं, बोलकर फोन कट कर दिया।
आज उसका दिल नहीं लग रहा था, रात की हसीन यादें दिल में थीं
अंश का आज दिल नहीं लग रहा था। वह ऑफिस में दो बार अपने बॉस से डांट खा चुका था। उसने रश्मि को फोन पर इसकी जानकार दी तो रश्मि तेज से हंस पड़ी। इतनी तेज की उसके ऑफिस में भी उसे डांट पड़ गई। हुआ ये कि उसी समय उसके बॉस सामने केबिन से निकल रहे थे। रश्मि ने कुछ देर बाद ये बात अंश को फोन पर बताई तो अंश ने कहा, एक तो तुम अलग हो रहा है और मेरी नौकरी भी लेकर ही मानोगी। अगर, मैं दोबारा हंसा तो मेरी तो नौकरी गई। फिर दोनों हंस पड़े। अंश को लग रहा था कि सिर्फ उसका ही मन ऑफिस में नहीं लग रहा बल्कि उधर तो रश्मि का भी यही हाल था। दोनों ने एक-दूसरे से मोबाइल चैट शुरू कर दिया। आज अंश को रश्मि से बहुत कुछ पूछना था। वो चैट पर सवाल पर सवाल किए जा रहा था। रश्मि को तो मानो मौका ही मिल गया। उसने मैसेज डाला-अच्छा तो अलग होने के दिन इतने सारे सवाल। दो साल में तो कुछ नहीं पूछा मुझसे। अंश ने जवाब भेजा-तुमने मौका ही कहां दिया। रश्मि ने मैसेज में चुटकी ली।
हाथों में हाथ डाले चांद को निराहते रहे दोनों
शाम को दोनों हजरतगंज में मिले। दुधिया रोशनी में खुले आसमां के नीचे एक-दूजे की बांहों में बांहें डाले वे लवलेन में घूमते रहे। अंश ने पुरानी बातें याद करने की कोशिश कीं तो रश्मि ने उसे उन बातों को दोबारा याद न दिलाने की हिदायत दी। रश्मि ने कहा कि अब वे रिश्ते खत्म कर रहे हैं और पुरानी बातें ताजा करने से दुख ज्यादा होगा और वो फिलहाल दुखी नहीं होना चाहती..। फिर दोनों मरीन ड्राइव पहुंचे। और एक कोने में जा बैठे। आज पूर्णिमा की रात थी। आसमां में चांद पूरा था…दोनों हाथों में हाथ डाले उस पूरे चांद को निहारते रहे। रश्मि ने अंश से कहा, सुनो..अंश न जाने किस दुनिया में खोया था..। रश्मि ने दोबारा थोड़ी तेज आवाज में बोला..सुनो अंश…इस आवाज के साथ अंश अपनी ख्वाबों की दुनिया से बाहर आया…..हां, बोलो..। चांद आज बेहद खूबसूरत है न…रश्मि ने पूछा..।
अंश को वो खूसबूरत पल चाहिए था जिसमें…
शायद वो खामोशी को तोड़ना चाह रही थी या शायद उसे यही पूछना था ..अंश ने एक बार चांद को देखा और फिर रश्मि की तरफ..हां, बिल्कुल तुम्हारी तरह..। तुम नहीं सुधरोगे..रश्मि ने हमेशा की तरह ये वाक्य जोड़ दिया। हां..मैं नहीं सुधरूंगा..अंश ने भी हर बार की तरह इसे दोहराया और दोनों हंस पड़े। अच्छा सुनो..ये चांद कभी आधा और कभी पूरा क्यूं होता है.. क्या ये अच्छा न हो कि या तो आधा ही रहे या फिर पूरा..। अंश इस सवाल का जवाब देना चाहता था बल्कि वो चाह रहा था कि रश्मि कोई ऐसा सवाल करे जिसके जवाब में वो अपने दिल की सारी बातें उसके सामने रख दे जिसका अब तक उसे मौका नहीं मिल पाया था। और आज उस खूबसूरत चांद के जिक्र के जरिए वो मौका अंश को मिल गया था।
रश्मि से बोलकर अंश उसकी आंखों में देखने लगा और फिर…
दोनों अपने साथ के अंतिम दिन को सेलीब्रेट करने के लिए हजरतगंज में मिले। लवलेन में घूमते हुए मरीन ड्राइव पहुंचे और एक कोने में बैठ गए। आज पूर्णिमा की रात थी। चांद पूरा चमक रहा था। चांद को निहारता हुए रश्मि ने वो सवाल कर दिया था जिसका जवाब शायद काफी दिनों से अंश देना चाहता था..अंश ने रश्मि की आंखों में देखते हुए जवाब देना शुरू किया…रश्मि तुम्हें याद है जब हम पहली बार मिले थे, कितने खुश थे हम…रश्मि ने हां, में जवाब दिया..और साथ में बोल पड़ी..पर, तुम उन बातों में क्यूं ले जा रहे हो..मेरा सवाल अलग है..। अंश बोल पड़ा…मैं उसका ही जवाब दे रहा हू, रश्मि…तुम सुनती ही नहीं हो । रश्मि ने कहा, अच्छा बाबा..बताओ..पर ज्यादा घुमाओ नहीं..।
आंखों में आंसू थे…पछतावा था…सबकुछ बदल गया था
ओके..मैं सीधे प्वाइंट पर आता हूं…। तो हमने कसमें खाई थीं कि हम हमेशा साथ-साथ रहेंगे। पर, आज क्या हो रहा है…तुम समझ रही हो मैं क्या कहना चाहता हूं..। वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता। इसमें खुशी और गम, मिलना और बिछड़ना दोनों लगा रहता है..। मतलब कुछ भी एक सा नहीं रहता। अगर सब एक सा ही रहता तो आज हम बिछड़ते ही क्यूं….है न रश्मि….रश्मि कुछ जवाब नहीं दे पा रही थी, वो बस सुने जा रही थी, अंश को निहारे जा रही थी। उसकी आंखें आंसुओं से डबडबाई लग रहीं थीं…अंश का जवाब अभी पूरा नहीं हुआ था… ।
अब दोनों रूम की तरफ चल पड़े साथ में रात बिताने
पर, रश्मि ने उसे बीच में ही रोक दिया..अंश क्या हम अब एक-दूसरे को अलविदा कह सकते हैं..। क्यूं क्या हुआ…अभी तो केट भी काटने का प्लान था..नहीं वो मुझसे नहीं हो पाएगा। पर, क्यूं..अंश प्लीज जिद न करो।..समझो…। मैं फिर कमजोर पड़ जाऊंगी। बल्कि कमजोर पड़ने लगी हूं..। पर, अब मैं कमजोर नहीं पड़ना चाहती…। तुम से बेहतर मुझे कौन समझ सकता है। तो मेरा साथ दो अंश..। अंश प्लीज इस बात को यहीं रोक दो और मुझे हग करो और जाने की इजाजत दो। हमारे साथ का सफर शायद यहीं तक था। अंश कुछ देर के लिए खामोश हो गया। वो रश्मि को कुछ देर उदासी भरी निगाहों से निहारता रहा। रश्मि नजरें नीचे गड़ाई अपने अंगूठे से जमीन पर कुछ बनाती रहे। कुछ देर बाद खामोशी तोड़ते हुए अंश ने कहा, इट्स ओके..तो रूम पर चलें..।
अंश प्लीज तुम चले जाओ…
नहीं अंश..आज और यहीं से हमें अपना सफर अलग करना होगा। तो चलो छोड़ देता हूं तुम्हें..पर, रात के 10 बजे हैं कहां जाओगे इस समय तुम…मेरी दोस्त यहीं पास में ही रहती है। मैं उसे बुला लेती हूं। ठीक है मैं उसके आने तक रूक जाता हूं..नहीं अंश प्लीज तुम जाओ..। अंश उसे और दुखी नहीं करना चाहता था..। उसने वहां से जाना ही बेहतर समझा। अंश चला गया। अंश बहुत तसल्ली से रश्मि के सवाल का जवाब देना शुरू करता है। बल्कि वह इस जवाब के बहाने अपने रिश्ते को दोबारा पा लेने की कोशिश करना चाहता है। पर, शायद रश्मि अभी इसके लिए तैयार नहीं है। वह जिद करती है कि अंश अब जवाब देना बंद कर दे और उसे जाने दे।
कुछ भी गलत नहीं हुआ है प्लीज समझो…
अंश को जाते देख रश्मि की आंखें छलछला आईं। वह अपनी जबान खोलती है…शायद वो अंश को आवाज देना चाहती है। पर, आवाज जबान के भीतर ही कहीं दबकर रह जाती है। वह बाहर नहीं निकलती। अंश जैसे ही कार स्टार्ट करता है, रश्मि तेज-तेज रोने लगती है। अंश उसके सामने से चला गया..वो उसे रोक क्यूं नहीं पाई। वो दौड़ पड़ती है…। बदहवाश कुछ दूर। फिर अचानक रूक जाती है…। खुद को थोड़ा संभालती है। ये मैं क्या कर रही हूं…। पर, मैं अंश को क्यूं जाने दे रही हूं। नहीं..कुछ गलत हो रहा है मेरे साथ…मेरे नहीं हमारे साथ….।
मैं सब ठीक कर दूंगी…समझो वो गलती से…
मैं सब ठीक कर दूंगी। वह मन में बड़बड़ाती है। वह अपना मोबाइल निकालती है और सबसे ऊपर जो नंबर दिखता है वह डायल कर देती है। उधर से अंश की आवाज आती है, ….हां, रश्मि बोलो..कहां तक पहुंचे हो अंश..। बस अपनी गली में हूं.. । मतलब घर तक नहीं पहुंचे हो न…नहीं बताओ..। अंश एक बात बोलूं..हां बोलो…मैं चाहती हूं ये चांद यूं ही पूरा रहे..। पर, चाहने से क्या होता है रश्मि..बहुत कुछ होता है अंश…मैं समझा नहीं…।
वो दौड़कर उससे लिपट गई, चूमने लगी और फिर…
तुम समझ रहे हो अंश, तुम अच्छी तरह से समझ रहे हो…। मैं वही कह रही हूं जो तुम सुनना चाहते थे और जिसके लिए तुम मुझे इतना सब समझा रहे थे..। रश्मि का गला रूंध आया था। वो ज्यादा बोल नहीं पाई..फोन पर फफक पड़ी और उसने फोन काट दिया। अचानक उसके चेहरे पर कोई तेज रोशनी पड़ी…। सामने उसकी फेवरिट कार खड़ी थी और उसका ड्राइवर गेट और अपनी बाहें खोले उसका इंतजार कर रहा था.. वो दौड़ी और उससे लिपट गई..चूमने लगी। पूरे चांद के नीचे उनका अधूरा होता रिश्ता फिर पूरा हो गया था…दोनों ने ऊपर देखा चांद को फ्लाइंग किस भेजी, एक-दूजे को किस किया और निकल पड़े नए सफर पर…
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