इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख शान्ति मिलती है। मृत्यु के पश्चात् विष्णु-लोक का वास प्राप्त होता है। इस दिन परोपकारिणी देवी का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन व्रत करके भगवद् भजन करके भजन कीर्तनादि करने का विशेष माहात्म्य माना गया है।

कथा-सतयुग में मुर नामक दानव ने देवताओं पर विजय पाकर इन्द्र को पदस्थ कर दिया। देवता लोग प्रसन्न होकर भगवान शंकर की शरण में पहुँचे। शिवजी के आदेश से देवता विष्णु जी के पास पहुँचे। विष्णु जी ने वाणों से दानवों का तो संहार कर दिया पर मुर न मरा। वह किसी देवता के वरदान से अजेय था। विष्णु ने मुर से लड़ना छोड़कर बद्रिकाश्रम की गुफा में आराम करने लगे। मुर ने भी पीछा न छोड़ा। मुर ने वहां जाकर विष्णु जी को मारना चाहा। तत्काल विष्णु के शरीर से एक कन्या पैदा हुई जिसने मुर का संहार कर दिया। उस कन्या ने विष्णु जी को बताया- “मैं आपके अंग से उत्पन्न शक्ति हूँ। विष्णु बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे वरदान दिया कि तुम संसार के माया जाल में उलझे तथा मोहवश मुझे भूले हुए प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्ष्म होओगी। तेरे अराधना करने वाले प्राणी आजीवन सुखी रहेंगे। उनको मरणोपरांत विष्णु लोक का निवास मिलेगा।” वही कन्या एकादशी’ हुई। वर्ष भर की चौबीस एकादशियों में इस एकादशी का अपूर्व महात्म्य है।

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