होली के अगले दिन धन-सम्पत्ति की देवी सम्पदा जी को डोरा बाँधना चाहिए तथा वैशाख में कोई अच्छा दिन देख कर डोरा खोलना चाहिए। डोरा बाँधने पर व्रत रख कर कथा सुननी चाहिए तथा खोलते समय भी व्रत के पूजन के बाद कथा कहनी-सुननी चाहिए। व्रत में पूजन करके एक बार हलवा-पूरी का भोजन करना चाहिए।डोरा ग्रहण करते समय सोलह तार का डोरा लेकर उसमें सोलह गांठें देकर हल्दी से रंग लेना चाहिए। चौकी पर रोली- चावल के साथ कलश स्थापित रके डोरा बाँध लो तथा कथा सुनो। वैशाख में डोरा खोलते समय अक्षत पुष्प लेकर कथा सुनो। सूर्य को अर्घ्य दो।

कथा – राजा नल अपनी पत्नी दमयन्ती के साथ बड़े प्रेम से राज्य करता था। होली के अगले दिन एक ब्राह्मणी रानी के पास आई। उसने गले में पीला डोरा बांधा था। रानी से उससे डोरे के बारे में पूछा तो वह बोली- “डोरा पहनने से सुख-सम्पत्ति, अन्न-धन घर में आता है। ” रानी ने भी उससे डोरा माँगा। उसने रानी को विधिवत् डोरा देकर कथा कही। राजा नल ने जब रानी के गले में डोरा देखा तो उसके बारे में पूछा। रानी ने सारी बात बता दी। राजा बोले- “तुम्हें किस चीज की कमी है? इस डोरे को तोड़ कर फेंक दो। ” रानी ने देवता का डोरा कहकर तोड़ने से इंकार कर दिया। पर राजा ने डोरा तोड़ कर फेंक दिया। रानी बोली – “राजन्! यह आपने ठीक नहीं किया। रात को राजा ” को स्वप्न में एक स्त्री बोली- ‘राजा! मैं यहाँ से जा रही हूँ। दूसरी स्त्री बोली – “राजा! मैं तेरे घर आ रही हूँ। ” इसी प्रकार १०-१२ दिन हो गए। राजा को रोज यही स्वप्न आता। वह उदास रहने लगा। रानी ने उदासी का कारण पूछा तो राजा ने स्वप्न की बात बता दी। रानी ने राजा से उन दोनों स्त्रियों का नाम पूछने को कहा। राजा ने दोनों से उनके नाम पूछे तो जाने वाली स्त्री ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ तथा आने वाली स्त्री ने ‘दरिद्रता’ नाम बताए ।लक्ष्मी के जाते ही सब सोना-चाँदी मिट्टी हो गया। रानी सहायता के लिए अपनी सखियों के पास गई। फटेहाल देख कोई भी उनसे नहीं बोला। दुःखी मन से राजा-रानी पर उनको जंगल में कन्दमूल खा कर अपने दिन बिताने लगे। राह में पाँच बरस के राजकुंवर को भूख लगी तो रानी ने कहा- “यहाँ पास ही एक मालिन रहती है। जो मुझे फूलों का हार दे जाती थी। उससे थोड़ा छाछ-दही माँग लाओ। पुत्र के लिए राजा मालिन के घर गया। वह दही बिलो रही थी। राजा के माँगने पर उसने कहा, “हमारे पास तो छाछ-दही कुछ भी नहीं है। ” बेचारे खाली हाथ लौट आए। आगे चलने पर एक विषधर ने कुंवर को डस लिया। विलाप करती हुई रानी को राजा ने धैर्य बंधाया। अब वे दोनों आगे चले। राजा दो तीतर मार लाया। भूने हुए तीतर भी उड़ गए। उधर राजा स्नान कर धोती सुखा रहा था कि धोती उड़ गई। रानी ने अपनी धोती फाड़ कर राजा को दी। वे भूख-प्यासे ही आगे चल दिए। मार्ग में राजा के मित्र का घर था। वहाँ जाकर उसने मित्र को अपने आने की सूचना दी। मित्र ने दोनों को एक कमरे में ठहराया। वहाँ मित्र ने लोहे के औजार आदि रखे हुए थे। दैवयोग से वे सब औजार धरती में समा गए। चोरी का दोष लगने के कारण वे दोनों रातों-रात वहाँ से भाग गए। आगे चल कर राजा की बहन का घर आया। बहन ने एक पुराने महल में उनके रहने की व्यवस्था की। सोने के थाल में उन्हें भोजन भेजा पर थाल मिट्टी में बदल गया। राजा बड़ा लज्जित हुआ थाल को वहीं गाड़ कर दोनों फिर भाग निकले। आगे चल कर एक साहूकार का घर आया। वह साहूकार राजा के राज्य में व्यापार के लिए जाता था। साहूकार ने भी राजा को ठहरने के लिए पुरानी हवेली में सारी व्यवस्था कर दी। पुरानी हवेली में साहूकार की लड़की का हीरों का हाल लटका हुआ था। पास ही दीवार पर एक मोर अंकित था। वह मोर ही हार निगलने लगा। यह देखकर राजा-रानी वहाँ से भी भाग खड़े हुए।अब रानी बोली- किसी के घर जाने के बजाय जंगल में लकड़ी काट बेचकर ही हम अपना पेट भर लेंगे। रानी की बात से राजा सहमत हुआ। अतः वे एक सूखे बगीचे में जाकर रहने लगे। राजा-रानी के बाग में जाते ही बाग हरा-भरा हो गया। बाग का मालिक भी बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने देखा वहाँ एक स्त्री-पुरुष सो रहे थे। उन्हें जगाकर बाग के मालिक ने पूछा- “तुम कौन हो?” राजा बोला- “मुसाफिर हैं। मजदूरी की खोज में इधर आए हैं। यदि तुम रखो तो यहीं मेहनत-मजदूरी करके पेट पाल लेंगे। ” दोनों वहीं नौकरी करने लगे। एक दिन बाग की मालकिन बैठी बैठी कथा सुन रही थी और डोरा ले रही थी। रानी के पूछने पर उसने बताया कि यह सम्पदा देवी का डोरा है। रानी ने भी कथा सुनी। डोरा लिया। राजा ने फिर पत्नी से पूछा कि यह डोरा कैसा बांधा है? तो रानी बोली- “यह वही डोरा है जिसे आपने एक बार तोड़कर फेंक दिया था। उसी के कारण सम्पदा देवी हम पर नाराज है। रानी फिर बोली- “यदि सम्पदा मां सच्ची है तो फिर हमारे पहले से दिन लौट आयेंगे।उसी रात राजा को पहले की तरह स्वप्न आया। एक स्त्री कह रही है— “मैं जा रही हूँ। ” दूसरी कह रही “राजा! मैं वापस आ रही हूँ। ” राजा ने दोनों के नाम पूछे तो आने वाली ने अपना नाम ‘लक्ष्मी’ बताया और जाने वाली बोली- मैं दरिद्रता हूँ। राजा ने लक्ष्मी से पूछा- अब जाओगी तो नहीं? लक्ष्मी बोली – यदि तुम्हारी पत्नी सम्पदा जी का डोरा लेकर कथा सुनती रहेगी तो मैं नहीं जाऊंगी। यदि तुम डोरा तोड़ दोगे तो चली जाऊँगी। बाग की मालकिन किसी रानी को हार देने जाती थी तो दमयन्ती हार गूंथ कर देती है। हार देखकर रानी बड़ी प्रसन्न हुई। उसने पूछा कि हार किसने बनाया है तो बाग की मालकिन ने कहा – “कोई पति-पत्नी बाग में मजदूरी करते हैं। उसने ही हार बनाया है। रानी ने बाग की मालकिन को दोनों परदेशियों के नाम पूछने को कहा। उन्होंने अपना नाम नल-दमयन्ती बता दिया। बाग की मालकिन दोनों से क्षमायाचना करने लगी। राजा ने उससे कहा, “इसमें तुम्हारा क्या दोष है। हमारे दिन ही खराब थे। “अब दोनों अपने राजमहलों की तरफ चले। राह में साहूकार का घर आया। वह साहूकार के पास गया। साहूकार ने नई हवेली में उसके ठहरने का प्रबन्ध किया तो राजा बोला पुरानी हवेली में ही ठहरूँगा।” वहाँ साहूकार ने देखा दीवार पर – “मैं तो चित्रित मोर नौ-लखे हार को उगल रहा था। साहूकार ने राजा के पैर पकड़ लिये। राजा ने कहा- “दोष तुम्हारा नहीं। मेरे दिन ही बुरे थे। आगे चला बहन के घर पहुँचा। बहन ने नए महल में ही रहने की जिद्द की। पैरों के नीचे की धरती खोदी तो हीरों से जड़ित थाल वहाँ से निकल आया। राजा ने बहन को बहुत धन भेंट स्वरूप दिया। आगे चल मित्र के घर पहुँचा तो उसने नए मकान में ठहरने की व्यवस्था की; पर राजा पुराने कमरे में ही ठहरा। वहीं मित्र के लोहे के औजार मिल गए। आगे चले तो नदी किनारे जहाँ राजा की धोती उड़ गई थी वह एक वृक्ष से लटकी हुई थी। वहाँ नहा-धोकर धोती पहन राजा आगे चले तो देखा कि कुंवर खेल रहा है। माँ-बाप को देखकर उसने उनके पैर छुए। नगर में पहुँचकर राजा की मालिन दूर्वा लेकर आई तो राजा बोला – “आज दूर्बा लेकर आ रही हो उस दिन छाछ के लिए मना कर दिया था। ” रानी ने राजा से कहा- “वह तो बुरे दिनों का प्रभाव था। ” महलों में गए। रानी की सखियाँ धन-धान्य से भरे थाल लिए गीत गाती आईं। नौकर-चाकर सब पहले के समान ही आ गए। यह सब सम्पदा जी का डोरा बाँधने का ही फल हुआ। सभी मन से सम्पदा माँ की जय बोलो – जय सम्पदा माँ ।

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