कुंभ-पर्व के मनाने के पवित्र तीर्थ हैं-हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन तथा नासिक कुंभ का पर्व चन्द्रमा, सूर्य तथा वृहस्पति ग्रहों के संयोग से होता है। इन चारों तीर्थों पर पृथक्-पृथक् राशि में जब ये ग्रह एकत्रित होते हैं तब कुंभ होता है। इसीलिए इनका माहात्म्य भी भिन्न-भिन्न है।

कुंभ बारह वर्ष बाद आता है। छः वर्ष बाद आने वाली अर्धकुंभी कहलाती है। इस पर्व पर तीर्थ-स्नान, दान तथा सत्संग आदि का विशेष माहात्म्य है। कुंभ तीर्थ हमारे देश की चारों दिशाओं में हैं। कुंभ का मेला बड़ा विशाल होता है। इस अवसर पर लोग देश के कोने-कोने से आकर यहाँ इकट्ठे होते हैं।

कथा – एक बार सुरों तथा असुरों ने मिलकर समुद्र का मंथन मंथन करते समय भगवान ‘धन्वन्तरि हाथ में अमृत कलश लेकर समुद्र से निकले। उस अमृत कलश के पीछे देवताओं तथा दानवों में झगड़ा हो गया। दोनों ही उस घड़े को हथिया लेना चाहते थे। देवताओं की चालाकी से देवराज इन्द्र का पुत्र जयन्त अमृत कलश का अपहरण करके भाग गया। दैत्यों ने उसका पीछा किया। इस कलश के निमित्त देवताओं तथा दैत्यों के बीच बारह वर्ष तक घमासान युद्ध होता रहा। इस अवधि में अमृत-कलश को हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन तथा नासिक – इन चार स्थानों पर रखा तथा उठाया गया। इसे रखने तथा उठाने में अमृत की कुछ बूँदें इन स्थानों पर छलक कर गिर पड़ीं। इसीलिए इन स्थानों पर कुंभ का पर्व पड़ता है।

पर्व के अवसर पर देश के चारों ओर से साधु-महात्मा तथा नागा साधुओं की शोभायात्राएं निकलती हैं। यह अवसर देश की संस्कृति को देखने व समझने का एक शुभ अवसर होता है। हम सबको सात्विक विचारों के साथ इसमें सहर्ष भाग लेना चाहिए।

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