देवराज इन्द्र ने एक बार किसी गन्धर्व से रुष्ट होकर उसे पत्नी सहित पिशाच योनि में डाल दिया। दोनों पिशाच-पिशाचिनी प्रेत कार्यों को करते हुए विचरण करने लगे। एक ऋषि ने दयापूर्वक उन्हें सद्-उपदेश देकर समझाया-बुझाया तथा माघ शुक्ल एकादशी का व्रत की सलाह दी। इसी व्रत के प्रभाव से वे पिशाच योनि से मुक्त हो गन्धर्व हुए। आज के दिन जो श्रद्धापूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, उन्हें सद्गति प्राप्त होती है।

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