गया में कितने जगह पिंडदान होता है, gaya me pind daan kha hota hai, गया में पिंडदान कब करना चाहिए

gaya me pind daan kha hota hai: दोस्तों, पितृ पक्ष की शुरुआत 10 सितंबर से होने जा रही है। हम सभी के परिवार के वे सदस्य जिनकी मृत्यु हो चुकी है, उनकी आत्मा की तृप्ति और उन्हें स्वर्ग प्राप्त हो इसके लिए गया में इस पितृपक्ष में पिंडदान का विशेष महत्व है। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आप गया में कहां-कहां पिंडदान कर सकते हैं। गया में पिंडदान का विशेष महत्व क्यों है और कैसे पिंडदान करें ताकि पितरों की आत्मा तृप्त हो और उन्हें स्वर्ग मिले। तो चलिए शुरू करते हैं।

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि पितरों के लिए साल भर में एक बार ऐसा मौका आता है जब हम उनकी आत्मा को तृप्त करके उन्हें स्वर्ग लोक की तरफ अग्रसर करते हैं। पिंडदान के दौरान जो अन्न और जल हम अर्पण करते हैं उसी की शक्ति से ही हमारे पितर आगे बढ़ते हैं और उनकी आत्मा तृप्त होती है तो वे प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद हमें भेजते हैं।

जब पितर हमारे खुश होंगे तो हमारे घर का हर सदस्य आनंदित रहेगा लेकिन अगर पितर लोग ही दुखी रहेंगे उस घर में सुख समृद्धि कभी आ ही नहीं सकती है। इसीलिए हिंदू धर्म में कहा जाता है कि कैसे भी वक्त निकालिए और अपने पितरों के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म जरूर करिए।

चलिए सबसे पहले आपको बताते हैं कि गया में ही पिंडदान क्यों करते हैं आखिर इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है और फिर बताएंगे कि गया में पिंडदान कहां कहां करें।

gaya me pind daan kha hota hai

गया में पिंडदान की पौराणिक कथा | gaya me pind daan kha hota hai

गरुण पुराण में इसके पीछे एक कहानी भी है। इसके अनुसार जब ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उन्होंने असुर कुल में एक गया नामके असुर को रचा था। असुर स्त्री के कोख से जन्म नहीं लेने के कारण असुर होकर भी उसके अंदर असुरत्व नहीं था।

लेकिन गया को यह लगता था कि अगर उसने कुछ बड़ा नहीं किया तो उसे शायर असुर कुल में सम्मान ना मिले। इस कारण उसने भगवान विष्णु की कड़ी तपस्या शुरू कर दी। भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने दर्शन दिया। भगवान ने आशीर्वाद मांगने को कहा तब गया ने कहा- आप मेरे शरीर में खुद वास कीजिए ताकि मुझे जो भी देखे उसके हर पाप नष्ट हो जाएं और वह जीव पुण्य आत्मा बने और उसका मोक्ष हो जाए। उसे स्वर्ग मिले।

भगवान विष्णु उससे खुश थे तो उन्होंने यह आशीर्वाद दे दिया और अपने धाम लौट गए। लेकिन इधर एक चीज गड़बड़ होने लगी जो भी उसे देखता वह कितना भी पापी हो उसका मोक्ष हो जाता। वह स्वर्ग पहुंच जाता। इससे देवता लोग घबड़ा गए और भगवान के शरण में गए।

भगवान ने सभी देवताओं को कहा कि आप परेशान न हों उसका अंत मैं खुद करूंगा। चूंकि भगवान के भीतर वास करने के कारण यमराज खुद उसे नहीं मार सकते थे। ऐसे में एक बार जब गयासुर कीकटदेश में जाकर भगवान की भक्ति में लीन हो शयन करने लगा तभी भगवान की गदा से उसकी इहलीला खत्म हो गई। यानी उसे भगवान ने मार दिया।

लेकिन मरने से पहले गयासुर ने भगवान से यह वरदान मांगा कि भगवान खुद यहां जल में विराजमान रहेें और जो भी यहां पर अपने पितरों का श्राद्ध करे उसकी आत्मा मुक्त हो जाए और उसे मोक्ष मिल जाए। भगवान ने मरते हुए गयासुर को यह आशीर्वाद दिया।

माना जाता है कि जहां पर गयासुर मरा उसे ही बाद में गया के नाम से जाना गया जो कि आजकल बिहार में स्थित है। इसके बाद से ही हर कोई इस पवित्र जगह पर अपने पितरों को तर्पण करता है। यहां स्वयं भगवान विष्णु विराजमान हैं इसलिए इसका महत्व और बढ़ जाता है।

गया में पिंडदान कहां होता है | gaya me pind daan kha hota hai

गया में करीब 40 से अधिक जगह ऐसे हैं जहां पिंडदान होता है। दरअसल, पितृपक्ष में यहां पिंडदान के लिए इतनी भीड़ हो जाती है कि एक जगह पर पिंडदान करा पाना संभव नहीं होता। इसीलिए यहां पर पंडितों ने पिंडदान के लिए अलग-अलग जगह बना रखे हैं जहां जाने के बाद आपको वहीं पर सारी सामग्री मिल जाती है और पंडित पहले से ही उपलब्ध रहते हैं। ऐसे में आप आसानी से पिंडदान कर पाते हैं।

गया में फल्गु तट पर ही यह श्राद्ध होता है। श्राद्ध कर्म फल्गू तट पर होने की लंबी और पौराणिक परंपरा है। माना जाता है कि इस फल्गु नदी के पानी में खुद भगवान विष्णु रहते हैं। ऐसे में इस पानी से जो भी तर्पण आप करते हैं वह सीधे आपके पितरों तक पहुंचता है और उन्हें तृप्त कर देता है। इसी तट के किनारे किनारे ही श्राद्ध के लिए पंडितों ने कई जगह बना दिए हैं।

लेकिन कुछ लोग फल्गू तट से अलग भी ले जाकर पिंडदान कराते हैं। वे ऐसा समझाएंगे आपको कि यह गया है और इसलिए यह पवित्र जगह है यहां कहीं भी आप श्राद्ध कर्म कर सकते हैं। लेकिन ऐसे पंडित ढकोसले पंडित होते हैं उनके झांसे में न आएं और आप उन्हेें साफ कह दें कि आप वहीं पर श्राद्ध कर्म करेंगे जहां ज्यादा लोग कर रहे हैंं। आप उन्हें कह दें कि जितना भी वक्त लगेगा आप इंतजार कर लेंगे लेकिन आप अपने पितरों को सही जगह से ही पिंडदान करेंगे। इसके बाद आप खुद देखेंगे कि ये पंडित राइट टाइम हो जाएंगे और आपको वहीं पर श्राद्ध कर्म करवाएंगे।

गया में पिंडदान का महत्व | gaya me pind daan kha hota hai

  • पितृ ऋण से आपको मुक्ति मिलती है।
  • अपने पितरों की आत्मा को आप तृप्त करते हैं।
  • जहां भगवान विष्णु मौजूद हैं वहां पर पिंडदान करने से सीधे पितरों का मोक्ष होता है।
  • पितरों को सीधे स्वर्ग मिलता है।
  • पितरों की आत्मा को कोई कष्ट नहीं होता।
  • उनके आशीर्वाद से आपका वर्तमान और आपका भविष्य सुधरता है
  • आपकी आने वाली पीढ़ी भी सुख शांति से रहती है।
  • अपने पितरों को आप अन्न और जल देकर उनकी आत्मा को तृप्त कर उन्हें मजबूती प्रदान करते हैं।
  • अपने पितरों के प्रति आप अपना श्रद्धा भाव दिखाते हैं।
  • जो श्रद्धा से किया जाए वही श्राद्ध है इसे मानते हुए ही श्राद्ध कर्म करें।

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गया में पिंडदान में कितना समय लगता है | gaya me pinddaan me kitna samay lagta hai

पिंडदान करना कोई साधारण काम नहीं है। अपने पितरों को सही से उन्हें स्वर्ग मिले इसके लिए अगर आप पिंडदान की पूरी विधि करते हैं तो फिर कम से कम सात दिन का समय इसमें लगता है। हालांकि आजकल लोगों के पास वक्त नहीं है ऐसे में गया में भी तमाम पंडितजी लोग एक घंटे में भी पिंडदान करा देते हैं।

पिंडदान की प्रक्रिया जटिल होती है लेकिन अक्सर जो यजमान होते हैं यानी जो पिंडदान कराने गए होते हैं उन्हीं के पास समय नहीं होता है। ऐसे में वे खुद पंडितजी से कह देते हैं कि पंडितजी थोड़ा जल्दी कराइएगा। यह बहुत ही गलत परंपरा विकसित हो रही है जिसका विरोध होना चाहिए।

गया में आजकल पंडितों ने भी अपना अलग-अलग घंटे के हिसाब से सेवा शुरू कर दिया है। जो कि गलत है लेकिन चूंकि जजमान खुद कह रहे हैं कि जल्दी करा दीजिए तो पंडित जी भी एक घंटे में सबकुछ कराके उन्हें छोड़ देते है और यजमान को लगता है कि उन्होंने बहुत अच्छे से पिंडदान कर दिया है।

गया में पिंडदान का कितना खर्चा आता है | gaya me pind daan kha hota hai

दोस्तों, पिंडदान का खर्चा आप पर निर्भर करता है। यथाशक्ति ही पिंडदान कीजिए। दिखावे में मत कीजिएगा। ऐसा नहीं कि वे तो ये चीजें दान कर रहे हैं तो आपको भी वही करना है। आपकी जितनी क्षमता है उस हिसाब से दान कीजिए। हां, यह जरूर है कि ऐसे जगहों पर कुछ पंडित लोग लालच में आ जाते हैं और ज्यादा पैसा मांगते हैं लेकिन आप कई पंडितों से बात करेंगे तो जरूर कुछ ऐसे मिल जाएंगे जो कम में ही आपका सारा पिंडदान प्रक्रिया को संपन्न करा देंगे।

गया में अगर 4-5 वेदी बनाकर दो या तीन पुजारी अगर पिंडदान में लगेंगे और तीन घंटे या उससे अधिक अगर पूजा चलती है तो आपको हर एक पंडितजी को 2 हजार रुपये देने होंगे। यानी मान कर चलिए कि 5 से 6 हजार रुपये आपके पंडितजी पर खर्च होंगे।

गयाजी कब जाना चाहिए | gaya me pind daan kha hota hai

गयाजी पितृपक्ष में ही जाना चाहिए। सबसे अधिक फल आपको पितृपक्ष में ही मिलता है। अगर आप पितृपक्ष में यहां जाकर अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं तो आप पुण्य के भागी होते हैं और आपके पितरों को मोक्ष भी मिलता है।

इस बार 10 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहा है जो कि 25 सितंबर तक चलेगा। ऐसे में इस बीच किसी भी दिन आप गया जाकर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म कर सकते हैं तर्पण कर सकते हैं। कुछ लोग पूछते हैं कि किस दिन जाएं तो इसका जवाब यही है कि हर एक दिन इसके लिए शुभ है। बस आपको घर से निकलते समय दिशाशुल के दिन ना निकलें।

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