भोजपुरी सिनेमा करवट ले रहा है। भोजपुरी सिनेमा नए आयाम गढ़ रहा है। द्विअर्थी संवादों और घटिया स्क्रिप्ट से निलकर भोजपुरी सिनेमा अब प्रयोगधर्मी स्क्रिप्ट की तरफ बढ़ रहा है। कुछ लोग हैं जो भोजपुरी सिनेमा को लगातार बेहतर करने की कोशिश में जुटे हैं। इस बदलाव के सबसे बड़े नाम हैं भोजपुरी प्रोड्यूसर रत्नाकर कुमार और निर्देशक पराग पाटिल। अब ये जोड़ी एक और शानदार फिल्म लेकर आ रही है, नाम है टुनटुन। इस फिल्म के जरिए रत्नाकर कुमार और पराग पाटिल की जोड़ी भोजपुरी सिनेमा को भी बदलने जा रही है। तो चलिए बात करते हैं कि आखिर इस फिल्म की खासियत क्या है?

जानवरों की संवेदनाओं को रेखांकित करती है यह फिल्म

पराग पाटिल की लिखी हुई यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है। खुद पराग पाटिल ने बताया है कि इस कहानी की उपज उनकी पत्नी की है, जिन्होंने सबसे पहले टुनटुन के रूप में एक जानवर की सच्ची कहानी को खुद से देखा था। उसी कहानी को पराग पाटिल ने डेवलप किया और चार साल बाद यह सच्ची कहानी अब मूर्त रूप लेने जा रही है।


भोजपुरी में अब तक ऐसी कहानी पर नहीं बनी है फिल्म

भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में यूं तो जानवर और इंसानों के प्रेम को लेकर कई फिल्में बनी हैं लेकिन सिर्फ किसी जानवर के संवेदनाओं को उकेरती यह पहली फिल्म है। यह फिल्म एक डॉग जिसका नाम टुनटुन है, उसकी संवेदनाओं को समाज के सामने रखेगी। इस फिल्म के जरिए एक सामाजिक संदेश भी देने की कोशिश है, और वह यह कि हम इंसानों को जानवरों की संवेदनाओं को महसूस करने की जरूरत है।

टुनटुन की इतनी चर्चा क्यों हो रही है?

इस फिल्म की इतनी चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि यह अपने सब्जेक्ट के साथ-साथ अपने यूनिक पोस्टर से भी सबका दिल जीत रही है। फिल्म का पहला पोस्टर जारी हुआ है और इस पोस्टर पर सिर्फ दो मासूम डॉगीज ही आपको दिखेंगे। भोजपुरी पोस्टरों में जहां हीरो-हिरोइनों के चेहरे को दिखाने की प्रथा है, वहां सिर्फ पोस्टर पर जानवर की फोटो देखकर लोगों को अपार खुशी मिल रही है। यह इस बात का संकेत है कि इंडस्ट्री खुद को बदलने के लिए तैयार है और इस तरह के कदम ही उस बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं।

रत्नाकर कुमार की क्या खासियत है, क्यों सबसे अलग प्रोड्यूसर हैं वे

रत्नाकर कुमार इस फिल्म के निर्माता हैं। रत्नाकर कुमार की खासियत यह है कि वह दर्शकों की नब्ज बखूबी पढ़ते हैं। इंडस्ट्री में बदलाव के लिए किस तरह के कंटेंट की जरूरत है, उसे समझते हैं। बदलाव के लिए रिस्क लेने को तैयार रहते हैं। यही वजह है कि वह बाबुल जैसी फिल्में बनाने के लिए अवधेश मिश्रा को तैयार कर लेते हैं। एंटरनेटमेंट से भरी फिल्मों के साथ सामाजिक फिल्में भी बननी चाहिए, वह इस बात में विश्वास करते हैं। वह बड़े स्टार्स के साथ भी फिल्में बनाते हैं और सब्जेक्ट को ध्यान में रखते हुए न्यू कमर्स पर भी दांव चलते हैं। भोजपुरी रतन के जरिए साफ-सुथरी गीतों को बढ़ावा देते हैं तो वहीं टुनटुन जैसी फिल्मों के जरिए जानवर और इंसानों बीच बेहतर रिश्ता स्थापित करने की भी कोशिश करते हैं।

पराग पाटिल और रत्नाकर कुमार की जोड़ी क्यों है सुपरिहट

पराग पाटिल और रत्नाकर कुमार की जोड़ी इसलिए भी हिट है क्योंकि ये दोनों एक-दूसरे को बखूबी समझते हैं। बदलाव की जो भूख रत्नाकर कुमार में है, वही भूख पराग पाटिल में भी दिखती है। कहानी को लेकर रत्नाकर कुमार जितने स्पष्ट हैं, उसे पर्दे पर उकेरने में पराग पाटिल उतने ही माहिर हैं। जाहिर है जब दो उस्ताद एक साथ मिल जाएंगे तो कुछ बेहतर ही रचेंगे। इसीलिए ये दोनों लगातार कुछ न कुछ बेहतर रच रहे हैं और इंडस्ट्री को इनसे काफी उम्मीदें भी हैं।

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