इस व्रत कार्तिक शुक्ला एकादशी से आरम्भ होकर पूर्णिमा को समाप्त होता है। इसीलिए इसे ‘भीषम-पंचक’ कहते हैं। इस दिन स्नानादि से शुद्ध होकर पापों के नाश और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस व्रत का संकल्प करे। घर के आँगन या नदी के तट पर चार दरवाजों वाला मण्डप बनाकर उसे गोबर से लीप देना चाहिए। बाद में सर्वतोभद्र की बेदी बनाकर उस पर तिल भरकर कलश स्थापित करो। “ओम् नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र से भगवान वासुदेव की पूजा करनी चाहिए। पाँच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलाना चाहियें और मौन होकर मंत्र का जाप तथा ‘ओम् विष्णवे नमः स्वाहा’ इस मंत्र से घी, तिल और जौ की १०८ आहुतियाँ देकर हवन करना चाहिये। पाँचों दिन ऐसा ही होना चाहिये। काम-क्रोधादि का त्याग करके ब्रह्मचर्य, क्षमा, दया और उदारता धारण करनी चाहिये ।

पूजन में सामान्य पूजा के अतिरिक्त पहले दिन भगवान के हृदय का कमल के पुष्पों से, दूसरे दिन कटि प्रदेश का विल्व पत्रों से, तीसरे दिन घुटनों का केतकी के पुष्पों से, चौथे दिन चरणों का चमेली के पुष्पों से और पाँचवें दिन सम्पूर्ण विग्रह की तुलसी की मंजरियों से पूजा करना चाहिये। हमारे देश में अधिकतर स्त्रियाँ एकादशी और द्वादशी को निराहार, त्रयोदशी को शाकाहार और चतुर्दशी तथा पूर्णमासी को फिर निराहार रहकर प्रतिपदा को प्रातःकाल में द्विज – दम्पत्ति को भोजन कराकर स्वयं भोजन करके “पंचभीष्म” नहाती हैं

• भीष्म पंचक व्रत की भगवान वासुदेव ने प्रशंसा की है। इसे सर्व पापनाशक तथा अक्षयफलदायक बताया गया है।

कथा – महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्प-पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशय्या पर शयन कर रहे थे तब भगवान कृष्ण को साथ लेकर पाँचों पांडव उनके गये। उपयुक्त अवसर समझकर धर्मराज युधिष्ठिर ने पितामह से प्रार्थना की कि आप हम लोगों को कुछ उपदेश दें। तब युधिष्ठिर की इच्छानुसार भीष्म पितामह पाँच दिनों तक राजधर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि का महत्वपूर्ण उपदेश दिया। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण बहुत सन्तुष्ट हुए और उन्होंने कहा – “पितामह! आपने कार्तिक शुक्ला एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया हैं, उनसे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म-पंचक व्रत स्थापित करता हूँ। जो लोग इसे करेंगे वे संसार के अनेक कष्टों से मुक्त हो जाएँगे। उन्हें पुत्र-पौत्र और धन-धान्य की कोई कमी न रहेगी। वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे ।

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