October 18, 2024

कार्तिक शुक्ला एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। अवध के ग्रामीण क्षेत्र में देवोत्थानी एकादशी का विकृत रूप डिठवन अधिक प्रचलित कहा जाता है इस दिन भगवान विष्णु जो क्षीर सागर में सोये हुए थे चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णु जी के शयन-काल के चार मासों में विवाहादिक मांगलिक कार्यों का निषेध है। हरि के जागने के बाद से ही सभी मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं।

व्रती स्त्रियाँ इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक पूर कर विष्णु भगवान के चरणों को कलात्मक रूप से आंगन में अंकित करती हैं। दिन की तेज धूप में विष्णु जी के चरणों को ढांक दिया जाता है जिससे धूप न लगे। रात्रि को विधिवत् पूजन के बाद प्रातःकाल भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल बजाकर जगाया जाता । इसके बाद पूजा करके कथा सुनी जाती है।

कथा – (१) एक राजा के राज्य में सभी एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य से एक व्यक्ति राजा के पास आकर कहने लगा कि मुझे नौकरी पर रख लो तो राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि रोज तुम्हें खाने के लिए सब कुछ मिलेगा पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने उस समय तो हाँ कर ली पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा कि इससे तो मेरा पेट नहीं भरेगा। भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दो। राजा ने उसे शर्त की बात कही पर वह अन्न छोड़ने को राजी न हुआ। तो राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और नहाकर भोजन पकाने लगा। बना चुका तो भगवान को बुलाने लगा, ‘आओ भगवान! भोजन तैयार है। बुलाने पर भगवान पीताम्बर धारण किए, चतुर्भुज रूप धारण कर आ पहुँचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। खी-पीकर भगवान अन्तर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।

पन्द्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए तो हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। तो राजा बोले कि मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूँ, पूजा करता हूँ पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए। राजा की बात सुन कर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उसने भोजन बनाना तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा। भगवान न आए अन्त में उसने कहा कि हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूँगा। पर भगवान नहीं आए तो वह उठकर प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। तो शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। तथा शीघ्र उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कुछ फायदा नहीं होता जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को भी ज्ञान प्राप्त हुआ तथा अन्त में वह भी स्वर्ग को प्राप्त कर सका।

कथा- (२) एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहार करते थे । भगवान ने एक बार उनकी परीक्षा लेनी चाही भगवान ने एक सुन्दरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। राजा अचानक उधर से निकले तो सुन्दरी को देख चकित से रह गए। उससे राजा ने पूछा कि तुम कौन हो? इस तरह यहाँ क्यों बैठी हो? तो वह बोली, मैं निराश्रित हूँ। नगर में कोई जाना-पहचाना नहीं, किससे सहायता मांगू। राजा उसके रूप पर मोहित था। वह बोला कि तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो। तो सुन्दरी बोली-

मैं तुम्हारी बात मानूँगी पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा, राजा पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊँगी तुम्हें खाना होगा। राजा उसके सौन्दर्य पर लट्टू था अतः उसने सभी शर्तें स्वीकार कर लीं।

अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में माँस-मछली आदि पकवाए तथा राजा के सामने परोसकर खाने के लिए कहा। राजा -रानी! आज एकादशी है मैं तो केवल फलाहार ही करूँगा। तो रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली कि या तो खाना खाओ नहीं तो मैं बड़े लड़के का सिर काट लूँगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म मत छोड़ो लड़के का सिर दे दो। पुत्र तो फिर मिल जाएगा पर धर्म जाकर फिर नहीं मिलेगा। इसी दौरान बड़ा लड़का खेल कर आ गया और माँ की आँखों में आँसू देख वह माँ से रोने का कारण पूछने लगा तो माँ ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी तो वह बोला कि मैं सिर देने के लिए तैयार हूँ। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी। राजा भी मन कड़ा करके दुःखी मन से लड़के का सिर देने को तैयार हुए तो रानी के रूप से विष्णु भगवान ने प्रकट होकर असली बात राजा को बता कर कहा कि तुम परीक्षा में पास हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से उन्हें वर माँगने को कहा तो राजा बोला कि आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करो। उसी समय एक विमान उतरा। राजा अपना राज्य पुत्र को सौंप उसमें बैठ परम-धाम को गए तथा राजकुमार धर्म से राज्य करने लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *