चैत्रमास के चारों सोमवार ‘तिसुआ सोमवार’ कहलाते हैं। इन सोमवारों को जगदीश जी के पट तथा बेतों की पूजा होती है। इन सोमवारों का व्रत-पूजन वही लोग करते हैं जिन्होंने जगदीश के दर्शन कर लिए होते हैं। इन सोमवारों की पूजा दोपहर के समय होती है। दोपहर तक श्री जगदीश का दर्शन करके आने वाला अथवा घर का प्रमुख व्यक्ति व्रत रखता हैं । पूजन के समय श्री जगदीश के पट एक पटा पर पधारे जाते हैं। बेतों को धोकर, धुले-जल को बर्तन में रख लेते हैं। इसी बर्तन में बेंत खड़े करके दीवार से टिकाए जाते हैं। इन पट तथा बेतों का धूप दीप आदि से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। फूलों की माला के साथ जौ की बालें, आम्र-मंजरी तथा टेसू के पुष्प चढ़ाने का विशेष महात्म्य है। कच्चे-पक्के पकवानों का भोग लगाकर कथा कही जाती है। कथा करने के बाद बेतों पर अक्षत चढ़ाए जाते हैं और भोग सब व्यक्तियों में बांटा जाता हैं।

तिसुआ सोमवार की व्रत कथा

प्राचीनकाल में भाटों का एक परिवार बड़ा निर्धन था। एक दिन भाटिन ने अपने दामाद तथा पुत्री को भोजन कराने की इच्छा प्रकट की। भाट कई गाँवों से भिक्षा माँग कर ले आया। भाटिन ने स्वादिष्ट भोजन तैयार किया। भोजन बनाकर हाथ-पैर धोने के लिए बाहर गई। दोनों ने रसोई में जाकर देखा तो वहाँ केवल एक छोटी तथा एक बड़ी दो रोटियाँ ही थीं। वे बड़े दुःखी हुए। फिर भी उन्होंने अधिक निराश न होकर बड़ी रोटी दामाद को तथा छोटी रोटी पुत्री को दे दी। दामाद तथा बेटी को बिदा करके भाट श्री जगदीश जी के दर्शनों के लिए निकला।

उसने रास्ते में देखा बहुत से लोग वृक्षों के पत्ते तोड़-तोड़ कर दोने तथा पत्तलें बना रहे हैं। कारण पूछने पर लोगों ने उसे बताया कि राजा के महल में श्री जगदीश जी का भण्डारा है। भाट भी उनके साथ काम करने लगा और सांयकाल होने पर वह भी उन्हीं के साथ राजमहल में चला गया। भाट भी भोजन करने बैठ गया। उसने एक पत्तल में स्वयं भोजन कियाऔर दूसरी बाँधकर एक मटकी में रख ली। छाछ बेचने वाली स्त्रियाँ शहर से गाँव लौट रही थीं। उसने वह मटकी उनमें से एक स्त्री को दे दी। वह स्त्री अभी थोड़ी ही दूर आगे चली थी कि मटकी का बोझ बढ़ने लगा। उसने मटकी उतारी और देखने लगी कि उसमें है क्या? ज्योंही उसने अपना हाथ मटकी में डाला तो हाथ उसी में फँसकर रह गया। अन्त में उसने श्री जगदीश जी का स्मरण करके कहा, “भाट की सौगात, भाट के यहाँ जाय, हमारा हाथ छूट जाय। इतना कहा ही था कि हाथ मटकी से निकलकर बाहर आ गया।

घर पहुँचकर उस स्त्री ने अपनी सास से कहा कि इस मटकी में देखना मत। भाटिन को बुलाना और उसे दे देना। पर सास का शंकाशील हृदय न माना। ज्योंही उसने मटकी खोलकर देखी तो उसमें हीरे-पन्ने थे। सास के मन में बेईमानी आ गई। उसने वह मटकी स्वयं रखकर भाटिन को दूसरी मटकी में गेहूँ भर देने का विचार किया। ज्योंही सास ने गेहूँ निकालने के लिए कच्ची कोठार का छेद खोला, उसमें से कीड़े निकलने लगे। घबराकर सास बोली, “भाट की सौगात भाट के जाए, हमारे गेहूँ गेहूँ हो जाएँ। ” इतना कहते ही गेहूँ के गेहूँ हो गये। उसने भाटिन को बुलाकर मटकी उसे दे दी। भाटिन ने घर जाकर मटकी को खोला तो हीरे-जवाहरातों से भरा पाया। उसने उनका एक हिस्सा पुण्य कर्मों के लिए संकल्प करके शेष अपने निर्वाह के लिए रख लिया।

उधर भाट श्री जगदीश जी की यात्रा के लिए आगे बढ़ता चला जा रहा था। उसे रास्ते में एक साधु मिला। साधु ने कहा, “यदि तुझे सचमुच ही श्री जगदीश जी की छड़ी लगी है तो तू हमारे धूने में धस जा । तत्काल ही श्री जगदीश जी के पास पहुँच जाएगा। ज्योंही भाट धूने में धंसने लगा, साधु ने मना करके अंधेरे कुएँ में गिरने का आदेश दिया। भाट कुएँ में कूदने को भी तैयार हो गया। फिर साधु के कहने पर भाट भड़भूजे के भाड़ में सिर देने को तैयार हो गया। भाट को सारी परीक्षाओं में सफल पाकर साधु बड़ा प्रसन्न हुआ।

रात को साधु ने भाट को एक चुटकी दाल, चावल तथा आटा देकर भोजन बनाने के लिए कहा। भाट ने एक हांडी में दाल-चावल डाल दिये और आटा गूंधकर ढक दिया। आँच लगते ही खिचड़ी हांडी से बाहर उफनने लगी। भाट ने उफान में आया हुआ पानी पी लिया और उसी से सन्तुष्ट हो गया। रसोई तैयार हो गई। उसने साधु को भोजन के लिए कहा। क्योंकि रसोई पहले ही जूठी हो चुकी थी इसलिए साधु ने भोजन करने से इन्कार कर दिया। भाट ने राहीगीरों को भोजन कराना शुरू कर दिया। फिर भी भण्डार में बहुत-सा भोजन बच गया। तब भाट ने साधु कहा, “अब मैं समझ गया। आप ही स्वामी जी हैं, क्योंकि ऐसी सिद्धि किसी और में नहीं है। मैं अल्पज्ञ हूँ और आप सर्वज्ञ हैं। मैं आपकी परीक्षा लेने योग्य नहीं हूँ। आपने कृपा करके मार्ग में दर्शन दिए हैं वैसे ही पुरी में भी दीजिए।

साधु बोला, “जहाँ हम हैं वहीं पुरी भी है। प्रम में न पड़। जो इच्छा हो माँग। ” भाट बोला, “महाराज मैं बहुत गरीब हूँ। मुझे तो पेट भर भोजन भी नहीं मिलता। कृपया मेरी दरिद्रता दूर कीजिए।” साधु ने कहा, “पुरी के पास ही बेंत की ने झाड़ी का वन है। तू उस झाड़ी में से पाँच बेंत तोड़ ला। ” भाट ने वैसा ही किया। बेंत तोड़ते ही उसकी मुश्कें बंध गई। यह देखकर साधु ने कहा, “तू लालची है। तुझे असंतोष तो है ही, तेरी तृष्णा भी प्रबल है। इसी कारण तेरी ऐसी दशा हो रही है। तू इन बेंतों को छोड़ने का संकल्प करके केवल पाँच बेंत लेकर चला जा। ” भाट ने वैसा ही किया। वह पाँच बेंत लेकर साधु के पास पहुँचा। साधु ने उसे पीतल की एक बटलोई देकर कहा, “चैत्र मास के प्रत्येक सोमवार को इन बेंतों की पूजा किया करना। चौथे सोमवार को हमारे नाम पर भंडारा देना। ऐसा करने से इस बटलोई में छप्पन प्रकार के व्यंजन मिलेंगे। “

बटलोई लेकर प्रसन्नचित्त भाट घर की ओर लौटा। रास्ते में वह एक स्थान पर पानी पीने लगा तो उसकी अंजलि में टेसू का एक फूल आ गया। फूल को देखते ही उसे स्मरण हुआ कि आज चैत्र मास का पहला सोमवार है। भाट ने पास ही खेत में काम कर रहे लोगों को बुलाकर उसी स्थान पर पूजन करके कथा कहनी चाही पर कोई भी उसकी कथा सुनने को राजी न हुआ। वह निराश होकर आगे बढ़ गया। उसके जाते ही किसानों का अनाज अपने आप जलने लगा। वे भाट को वापिस बुला लाए। भाट ने पुनः बेंतों की पूजा करके कथा कही और अपने घर की ओर चल दिया।

दूसरे सोमवार को उसे भेड़ें चराता हुआ गड़रिया मिला। उसने उससे कथा सुनने को कहा पर गड़रिये ने भी कोई ध्यान न दिया। परिणामतः गड़रिये की भेड़ें भी बिला गईं। गड़रिये ने भी उसे बुला कर कथा सुनी। कथा पूरी हुई और उसकी भेड़ें दुगुनी चौगुनी होकर चरती दिखाई देने लगीं।

भाट की दो लड़कियाँ थीं। एक अमीर के घर ब्याही हुई थी तो दूसरी गरीब के यहाँ । तीसरे सोमवार को भाट बड़ी लड़की के घर पहुँचा। उसने बेटी से कथा सुनने के लिए कहा पर बेटी ने ध्यान न दिया। तब वह अपनी गरीब बेटी के यहाँ गया। वह बड़े आदर भाव से पिता से मिली। उसने पिता की इच्छानुसार चौका लगाया। भाट ने श्रद्धा भाव से पूजन किया। लड़की घर से सन की अंटी लेकर बनिये की यहां से गुड़, घी आदि ले आई। उसी घी, गुड़ से साधु के नाम का हवन करके कथा सुनी। भाट ने साधु द्वारा दी हुई बटलोई में बेंत डालकर खटखटाया। उसमें से कच्चे-पक्के छप्पन प्रकार के व्यंजनों के ढेर लग गये। गाँव के लोग प्रसाद लेने आये। भाट ने उन्हें भोजन कराया। चलते समय भाट ने अपनी लड़की को श्री स्वामी जी का स्मरण ध्यान करने का जैसा आदेश दिया, लड़की नियमपूर्वक वैसा ही करने लगी। उसके घर में नित्यप्रति धन-धान्य बढ़ने लगा।

जब भाट अपने गाँव के समीप पहुंचा तो उसे वहां विशेष चमत्कार दिखाई दिया। गाँव से बाहर नये-नये बाग-बगीचे, मन्दिर, तालाब आदि देखकर वह विस्मित रह गया। उस दिन भी सोमवार ही था। भाट ने गाँव भर के लोगों को निमंत्रण देकर बुलाया। बेंतों की पूजा करके बेंत से बटलोई को खटखटाया। छप्पन व्यंजनों के ढेर लग गये। गाँव के लोग भोजन करके चले गये। उस दिन राजा के यहाँ भी प्रसाद पहुँचा दिया गया।

राजा को अपने नाई के द्वारा पहले ही भाट की बटलोई की करामात का पता चल चुका था। राजा ने किसी प्रकार से भाट की बटलोई हड़पने की बात मंत्रियों से कही। मंत्रियों का परामर्श था कि राजकुमार को भाट के घर भेजना चाहिए। वह हठपूर्वक उससे बटलोई ले लेगा। यदि भाट न दे तो बलपूर्वक बटलोई छीन ली जाए।

दूसरे दिन सेवकों सहित राजकुमार भाट के घर जा पहुँचा। भाट ने राजकुमार को माँग पर प्रसन्नतापूर्वक बटलोई दे दी। उन लोगों की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। राजा ने नगर भर में भोजन का निमंत्रण भिजवा दिया किन्तु बटलोई में बेंत डालकर खटखटाने पर उसमें से कुछ न निकला। भोजन के लिए आए हुए लोग भूख से व्याकुल हो रहे थे। भंडार भी खाली था। राजा ने क्रुद्ध होकर भाट को पकड़ने के लिए सिपाही भेजे किन्तु वह तो पहले ही भाग निकला था।

भाट भयभीत होकर स्वामी जी के पास ही चला जा रहा था। उसे रास्ते में आम के दो वृक्ष, दो पोखरें, एक बोझ वाली स्त्री, एक सांप, एक घोड़ा मिला। घोड़ा भाट से बोला, “स्वामी जी से मेरा संदेश कहना कि मैं बहुत दिनों से सज-संवर कर घूम रहा हूँ। मुझ पर कोई भी सवारी नहीं करता। “

भाट आगे बढ़ा तो उसे एक नदी, एक गाय तथा एक अधवने मकान का मालिक मिला। वे सब दुःखी थे। उन सबके संदेश लेता हुआ भाट जगदीश पुरी के समीप जा पहुँचा। वहाँ स्वामी जी ने उसे पुनः दर्शन दिये। उसने स्वामी जी को साष्टांग प्रणाम करके बटलोई तथा अपने बड़े बेटी-दामाद की घटना कह सुनाई। स्वामी जी ने उससे कहा, “घर लौट जाओ। राजा से बटलोई ले लो तथा अपने बेटी-दामाद को कहानी सुना दो। **

भाट स्वामी जी को दण्डवत प्रणाम करके लौट पड़ा। वह जितने कदम घर की ओर उठाता था उतना ही बहरा होता जाता था। वह घबरा कर पुनः स्वामी जी की ओर चल दिया। वहाँ पहुँच कर उसने रास्ते में मिलने वालों के संदेश कह सुनाए। स्वामी जी ने बताया कि वे आम के पेड़ पूर्वजन्म की देवरानी जेठानी हैं। वे सदा कलह करती रहती थीं। कभी भी मिलकर नहीं रहती थीं। इस कारण उनका जल कोई नहीं पीता। तुम दोनों पोखरों के पाँच-पाँच चुल्लू जल पीना। सब लोग उनका जल पीने लगेंगे। बोझ वाली स्त्री स्वार्थिन है। उसने पूर्व जन्म में दूसरों से अपने बोझ तो उतरवाये पर उनके बोझ नहीं उतारे। इसीलिए उसे यह दंड मिला। तुम यदि उसके बोझ को स्पर्श कर दोगे तो उसका बोझ उतर जाएगा। सिर पर बड़ा भारी तवा लेकर फिरने वाली स्त्री ने पूर्व जन्म में सास ननद की ओट करके चूल्हा पर तवा चढ़ाया था और खाने बैठ गई थी। तुम उसका तवा छू दोगे तो उसका पाप दूर हो जाएगा। आधा-बांबी तथा आधा बाहर रहने वाला सर्प पूर्व जन्म में प्रधान था। उसने औरों की विद्या तो ली थी पर अपनी विद्या किसी को न दी थी। तुम्हारा स्पर्श पाकर वह भी चलने लगेगा। गाय पूर्व जन्म में स्त्री थी। उसने अपनी सौत तथा अपने पुत्र में झगड़ा करवाया था। इसीलिए उसे बेटे का वियोग हुआ है। तुम उन्हें भी मिला देना। घोड़ा अपने स्वामी को रणभूमि में लड़ता छोड़कर भाग गया था। यदि तुम उस पर सवार होकर पाँच कदम चलोगे तो सब उस पर सवारी करने लगेंगे। अधबने मकान के मालिक से कहना कि उसके नगर में कोई कन्या कुंआरी है. उसके माता-पिता बड़े निर्धन हैं। उस कन्या का यदि वह किसी अच्छे घर में ब्याह कर देगा तो उसका मकान सहज ही उठ जाएगा। उसकी समस्य मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाएंगी। इतना सब कहकर स्वामी जी अन्तर्धान हो गये।

जब रास्ते सबको संदेश पहुँचाता हुआ भाट अपने गाँव पहुँचा तो राज, ने उसे बुलाया और उसका भव्य स्वागत किया। उसकी बटलोई उसे लौटा दी भाट ने स्वामी जी की पूज की लड़की तथा दामाद को बुलाया और उन्हें कथा सुनाई। कथा सुनने से उनकी सम्पत्ति पहले जैसी ही हो गई।

इस प्रकार कुदरती भाट की यात्रा के समय से तिसुआ सोमवार की यात्रा का प्रचलन हुआ। टेसू के फूल से पूजन की परम्परा भी यहाँ से शुरू हुई है। इसीलिए इन्हें तिसुआ (टिसुआ) सोमवार कहते हैं।

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