इसे गोवत्स द्वादशी भी कहते हैं। इस दिन के लिए मूँग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्याह्न के समय बछड़े को सजाने का विशेष विधान है। व्रत करने वाले व्यक्ति को भी इस दिन उक्त अन्न ही खाने पड़ते हैं। इस दिन गोदुग्धादि वर्जित है। सर्वत्र भैंस का ही दूध आदि प्रयोग किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन पहली बार श्रीकृष्ण जंगल में गाएँ-बछड़े चराने गये थे। माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके गोचारण के लिए तैयार किया। ब्राह्मणों के स्वस्तिपाठ तथा हवनादि में विलम्ब हो गया। पूजापाठ के बाद गोपाल ने बछड़े खोल दिये। यशोदा ने बलराम से कहा, “बछड़ों को चराने दूर मत जाना। यहीं थोड़ी दूर चराकर शीघ्र लौट आना। कृष्ण को अकेले मत छोड़ना। देखना, यमुना के किनारे अकेला न जाए। परस्पर सखागण झगड़ना मत। ” गोपाल द्वारा गोवत्सचारण की इस पुण्य तिथि को इसीलिए पर्व के रूप में मनाया जाता है।