जिस समय सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है उस समय को ‘संक्रान्ति’ कहते हैं। किसी भी संक्रान्ति का जिस दिन संक्रमण हो उस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर, चौकी पर शुद्ध वस्त्र बिछाकर, अक्षतों से अष्टदल कमल बनाकर उसमें सूर्यनारायण की मूर्ति स्थापित करके उनका स्नान, गन्ध, पुष्प, धूप तथा नैवेद्य से विधिवत् पूजन करना चाहिए।
ऐसा करने से समस्त पापों का क्षय हो जाता है। सुख सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।
किसी महीने की कोई संक्रान्ति यदि शुक्ल पक्ष की सप्तमी और रविवार को हो तो उसे ‘महाजया संक्रान्ति’ कहते हैं। उस दिन उपवास, जप, तप, देव-पूजा, पितृ-तर्पण तथा ब्राह्मणों को भोजन कराने से अश्वमेध के समान फल मिलता है। व्रती को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।