नाग पंचमी की पूजा के बाद भी साँपों के आक्रमण से बचने के लिए श्रावण शुक्ला नवमी को नेवलों की पूजा की जाती है। पुत्रवती स्त्रियाँ बड़े मनोयोग से इस व्रत को करती हैं। स्नान के बाद कलश स्थापन करके गणेश पूजा होती है। इसमें गुड़, घी का विशेष महत्व है। उड़द व चने की दाल की पीठी भर कर कचौड़ियाँ बनाई जाती हैं। इस व्रत का यही भोजन है। पूजा के बाद कथा इस प्रकार सुनाई जाती है
कथा – एक किसान के बच्चों को जन्म के समय ही सांप खा जाता था। दोनों पति-पत्नी परेशान थे। कोई उपाय समझ में नहीं आया। सोच-विचार कर उन्होंने एक नेवला पाल लिया। अब उन्हें साँप का भय न रहा। एक दिन किसान की पत्नी पति का भोजन ले खेत पर गई तो मौका पाकर सांप बच्चे को खाने आया, तब नेवले ने सांप के टुकड़े-टुकड़े कर डाले तथा अपनी बहादुरी मालकिन को बताने के लिए खून से सना मुंह लेकर द्वार पर बैठ गया। मालकिन आई। नेवले का खून से सना मुंह देख उसने सोचा यही मेरे पुत्र को खा कर यहाँ बैठा है तो उसने हाथ के बर्तन नेवले पर दे मारे। आनन-फानन में नेवला तड़प कर मर गया। भीतर जा स्त्री ने देखा – बच्चा तो खेल रहा है पर उसके पास ही सांप मरा पड़ा है। उसे अब अपनी गलती का आभास हुआ। शोक में व्याकुल स्त्री को कहीं शान्ति न मिली तो एक दिन नेवले ने उसे स्वप्न में कहा-“जो हो गया उसे भूल जाओ पर आज के दिन यदि पुत्रवती माताएँ मेरा चित्र बना मेरी पूजा करें तो उनकी सन्तान की रक्षा होगी। ” तभी से नेवले की पूजा होती है।