श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी तक कपर्दि विनायक व्रत किया जाता है। जो मनुष्य एक मास तक एक समय भोजन करके कपर्दि गणेश का व्रत करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस व्रत में भी पूजा की विधि गणेश चतुर्थी के व्रत की-सी ही है। इसमें विशेषता यह है कि पूजा के बाद २८ मुट्ठी चावल और कुछ को देने का विधान है। मिठाई ब्रह्मचारी
कथा – एक बार भगवान शिव तथा पार्वती जी चौपड़ खेल रहे थे। पार्वती ने खेल ही खेल में भगवान शिव की सारी वस्तुएँ जीत लीं। शिवजी ने जीती हुई वस्तुओं में से केवल गजचर्म वापिस मांगा। पर पार्वती ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया। क्रुद्ध होकर महादेव जी से कहा, “अब मैं २९ दिन तक तुमसे बोलूंगा नहीं। ” यह कहकर महादेव अन्यत्र चले गये। पार्वती जी भी उन्हें ढूंढ़ती-ढूंढ़ती एक घनघोर वन में जा पहुँची। उन्होंने वहाँ कुछ स्त्रियों को व्रत का पूजन करते देखा । कदर्पि-विनायक व्रत था वह पार्वती जी ने भी उन्हीं स्त्रियों के अनुसार वह व्रत करना आरम्भ कर दिया। उन्होंने अभी एक ही व्रत किया था कि शिवजी उसी स्थान पर प्रकट हो गये। शिवजी ने पार्वती से पूछा, “तुमने ऐसा क्या विलक्षण उपाय किया है, जिससे मुझसे उदासीन का निश्चय भंग हो गया। ” तब पार्वती ने कपर्दि विनायक व्रत का विधान शिव जी को बता दिया। पुनः शिवजी ने विष्णु को, विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने इन्द्र को तथा इन्द्र ने राजा विक्रमादित्य को यह व्रत बताया। राजा विक्रमादित्य ने इसका वर्णन अपनी रानी से किया। रानी ने राजा की बात पर विश्वास तो किया नहीं उलटे निंदा की। इस कारण उसके कोढ़ हो गया। राजा ने तत्काल रानी को कहीं अन्यत्र चले जाने का आदेश दिया ताकि उसका राज्य इस भयंकर रोग से बच जाए।
रानी ने महल छोड़ दिया। वह ऋषियों के आश्रम जाकर उनकी सेवा करने लगी। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर मुनियों ने बताया कि तुमने कपर्दि विनायक का अपमान किया है, इसलिए जब तक तुम गणेश जी का पूजन व्रत नहीं करोगी, स्वस्थ नहीं हो पाओगी।
उसने गणेश-पूजन व्रत आरम्भ किया। एक मास पूरा होते ही रानी स्वस्थ हो गई। रानी वहीं आश्रम में रहने लगी।
एक बार पार्वती नंदी पर सवार होकर शिवजी के साथ उस वन से गुजरीं। मार्ग में एक दुःखी ब्राह्मण को देखकर पार्वती जी ने पूछा, “हे ब्राह्मण! आप किसलिए इतना विलाप कर रहे हैं?”
ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “यह सब दरिद्रता की ही कृपा का फल दयालु • पार्वती ने ब्राह्मण को भी विक्रमादित्य के राज्य में है। चले जाने का आदेश दिया। “वहाँ एक वैश्य से पूजन की सामग्री लेकर विनायक व्रत पूजन करो। तुम्हारी दरिद्रता नष्ट हो जाएगी और ब्राह्मण ने वैसा ही किया और एक दिन राजमंत्री हो गया।
एक दिन राजा विक्रमादित्य उस ऋषि आश्रम में आ पहुँचे, जहाँ उनकी रानी रहती थी। रानी को स्वस्थ तथा निरोग देखकर उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। वे रानी को लेकर महलों में चले गये।
साधक को चाहिये कि व्रत काल के एक मास में इस कथा को कम से कम पांच बार अवश्य सुनें।