भारत के सन्त कवियों में महात्मा कबीर को विशेष स्थान प्राप्त है। इनका जन्म ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को संवत् १४५५ में कहा जाता है कि ये एक विधवा ब्राह्मणी की सन्तान से हुआ । उस विधवा ने लोक-लाज के भय से इन्हें त्याग दिया। तब नीमा व नीरू नामक जुलाहा दम्पत्ति इन्हें नदी तट से उठा लाए तथा इनका पालन-पोषण करने लगे।
महात्मा कबीर ने समाज में फैले आडम्बरों का घोर विरोध किया। समाज को एकता के सूत्र में बांधने के लिए राष्ट्रीयता की भावना लोगों में पैदा की। साम्प्रदायिकता को नष्ट कर सामाजिक एकता स्थापित करने में इन्होंने बड़ा योगदान दिया।
कबीर की भाषा लोक प्रचलित तथा सरल थी। कबीर अनपढ़ थे। पर वे दिव्य प्रतिभा के धनी थे। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद हिन्दू-मुसलमान उनके शव को लेकर छीना-झपटी करने लगे। पर वहाँ शव के स्थान पर फूलों का ढेर मिला। वहाँ से आधे फूल लेकर हिन्दुओं ने दाह-संस्कार किया, शेष को मुसलमानों ने दफना दिया। कबीर अन्ध परम्पराओं के विरोधी थे। उन्हीं की पावन स्मृति में उनकी जयन्ती भारत के कोने-कोने में मनाई जाती हैं।