इस दिन जनक सुता सीता जी का पूजन किया जाता है। यह व्रत भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने समुद्र तट की तपोमयी भूमि पर, गुरुवर वशिष्ठ की आज्ञा से किया था। इसमें जौ, चावल, तिल आदि के चरु का हवन और पुए का नैवेद्य अर्पण किया जाता है। यह व्रत अपनी अभीष्ट सिद्धि के लिए किया जाता है। जानकी जी की प्रतिमा का पूजन करके एक हजार दीपक जलाने की रीति इस पर्व की महानता भी है।संसार के महिला-जगत में जानकी जी का सर्वश्रेष्ठ स्थान हैं उनकी पति सेवा भारतीय धर्म-साधना के इतिहास में अनुपम है जानकी जी के नाम स्मरण से ही नारियों में पति-व्रत धर्म के प्रति निष्ठा उत्पन्न होती है। जानकी जी के तेजस्वी तथा आदर्श व्यक्तित्व के गुणों को अपने जीवन में उतारने के लिए ही नारियाँ इस उत्सव को सामूहिक स्तर पर मनाती हैं। 1