भाइयों आज मैं आपको चोरी के बारे में बताने जा रहा हूं जो इस प्रकार है:-
चोरी को भारतीय दंड संहिता की धारा 378 में परिभाषित किया गया है तथा चोरी का दंड धारा 379 आईपीसी में बताया गया है जो कि 3 साल का है अब हम आपको बता रहे हैं कि चोरी क्या होती है :
चोरी क्या होती है ?
जो कोई किसी व्यक्ति के कब्जे में से उस व्यक्ति की सहमति के बिना कोई जंगम संपत्ति बेईमानी से ले लेने के आशय से हटाता है वह चोरी करता है यह कहा जाता है
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि चोरी के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं:-
१- संपत्ति जंगम होनी चाहिए अर्थात वह जमीन से जुड़ी हुई ना हो या यूं कहें की संपत्ति चल होनी चाहिए या चलाएं मान होनी चाहिए।
२- संपत्ति बेईमानी के आशय से ले लेने के आशय से होनी चाहिए।
३- जिस व्यक्ति के कब्जे में संपत्ति है उसकी सहमति के बिना वह चीज ले लेनी चाहिए।
४- इसमें वस्तु का या संपत्ति का स्वामित्व महत्व नहीं रखता है।
(परंतु भूलवश किसी के कब्जे से ली गई संपत्ति जो कि बेईमानी की नियत से नहीं ली गई है चोरी नहीं कहलाती है।
चोरी का एक उदाहरण निम्नलिखित है:-
दिनेश रमेश के घर पार्टी में गया और वहां उसने रमेश की अलमारी के ऊपर एक सोने की अंगूठी रखी देखी मौका पाकर उसने रमेश कि वह अंगूठी चोरी करने के इरादे से लेकर परंतु पकड़े जाने के डर से उसी के घर में एक ऐसी जगह छुपा दी जिससे उसको विश्वास हो गया कि वह आने वाले कुछ दिनों में वहां से उसको हटा कर ले लेगा अर्थात उसका दुरूपयोग लेगा । इस प्रकार जैसे ही दिनेश ने रमेश की अंगूठी प्रथम बार उसके स्थान से हटाई उसने चोरी की यह कहना बिल्कुल सही है