किसी भी कार्य को आरम्भ कर निर्विघ्न पूरा करने की इच्छा से फाल्गुन माह में शुक्ल चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। महाराजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने के लिए यह व्रत किया था। शंकर भगवान ने त्रिपुरासुर के वध के निमित्त भी यही व्रत किया था। समुद्र मंथन निर्विघ्न पूर्ण हो, इस इच्छा से नारायण जी ने भी इसी व्रत को किया था। इस दिन गणेश जी की मंगल मूर्ति बना कर धूप-दीप आदि से पूजन करके तिल का भोग लगाना चाहिए। तिल दान करने चाहिएँ। तिलों का हवन करना चाहिए। इससे विघ्न दूर होते हैं।