akshaya tritiya ke bare me bataye। akshaya tritiya 2022 hindi। akshaya tritiya ka vrat kaise kare। akshaya tritiya ki katha kya hai
दोस्तों, हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का बहुत बड़ा महत्व है। पौराणिक कथाओं में भी इस दिन के व्रत की जानकारी मिलती है। अक्षय तृतीया का व्रत कर महिलाएं अपने सभी मनचाहा वरदानों को प्राप्त कर सकती हैं। यही वजह है कि इस दिन का महत्व और बढ़ जाता है। तो चलिए आज आपको इस अक्षय तृतीया के बारे में विस्तार से बताते हैं। आपको बता दें कि अक्षय तृतीया को ही वैशाख शुक्ल तृतीया भी कहते हैं। तो चलिए इसके बारे में पूरी जानकारी विस्तार से पढ़िए।
आज से ही शुरू होता है सतयुग और त्रेतायुग। akshaya tritiya 2022 hindi
आपको यह जानना चाहिए कि इसी दिन से सतयुग तथा त्रेतायुग का आरम्भ माना जाता क्योंकि इस दिन का किया हुआ जप, तप, ज्ञान तथा दान अक्षय फलदायक होता है। इसलिए इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहते हैं। यदि यह व्रत सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र में आए तो महाफलदायक माना जाता है।
इस दिन गंगा स्नान जरूर करें। akshaya tritiya kab hai hindi me
akshaya tritiya 2022 hindi के बारे में पढ़ने पर आपको यह मिलेगा कि यदि तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोषकाल तक रहे तो श्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन गंगा स्नान का भारी माहात्म्य है। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, उसे पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन प्रातःकाल पंखा, चावल, नमक, घी, चीनी, साग, इमली, फल, वस्त्र का दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देनी चाहिए।
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बद्रीनारायण के पट आज ही खुलते हैं
akshaya tritiya 2022 hindi के बारे में पढ़ते हुए आपको इसकी भी जानकारी मिलेगी कि इसी दिन श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। इस दिन लोग ठाकुर द्वारे में जाकर अथवा बद्रीनारायण जी का चित्र सिंहासन पर रख उन्हें मिश्री तथा भीगी हुई चने की दाल का भोग लगाते हैं। इस दिन भगवान को तुलसी-जल चढ़ाकर भक्तिपूर्वक आरती करनी चाहिए।
पुराणों में अक्षय तृतीया की कहानी
इस दिन शाकल नगर के वैश्य धर्मदास ने पत्नी के मना करने पर भी सारी सम्पत्ति ब्राह्मणों को दान कर दी थी। इसी के परिणामस्वरूप वह दूसरे जन्म में कुशावती का राजा हुआ था। वृन्दावन के श्री बाँकेबिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन श्रीविग्रह के चरण-दर्शन होते हैं, अन्यथा पूरा वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। नर-नारायण ने भी इसी दिन अवतार लिया था। श्री परशुराम जी का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। हयग्रीव का अवतार भी इसी दिन हुआ था। यह पर्व दान-प्रधान है। इसके आस-पास पड़ने वाली मेष संक्रान्ति को ब्राह्मणों को चीनी या गुड़ के साथ सत्तू दान करने चाहिए। इस दिन सत्तू अवश्य खाने चाहिए।
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अक्षय तृतीया की कथा जो युधिष्ठिर और कृष्ण से जुड़ी है
अक्षय तृतीया’ का महत्व युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था। श्रीकृष्ण बोले- राजन्! यह तिथि परम पुण्यमयी है। इस दिन दोपहर से पूर्व स्नान, जप, तप, होम, स्वाध्याय पितृ तर्पण तथा दानादि करने वाला महाभाग अक्षय पुण्य फल का भागी होता है। इसी दिन से सत्ययुग का आरम्भ होता है। इसलिए इसे ‘युगादि तृतीया’ भी कहते हैं।
एक यह कहानी भी प्रचलित है
प्राचीन काल में एक निर्धन, सदाचारी तथा देव ब्राह्मणों में श्रद्धा रखने वाला वैश्य था। उसका परिवार बहुत बड़ा था। इसलिए वह सदैव व्याकुल रहता था। उसने किसी से इस व्रत के माहात्म्य को सुना। कालान्तर में जब यह पर्व आया तो उसने गंगा-स्नान किया। विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की। गोले के लड्डू, पंखा, जल से भरे घड़े, जौ, गेहूँ, नमक, सत्तू, दही, चावल, गुड़, सोना तथा वस्त्र आदि दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान कीं।
…इसलिए अक्षय तृतीया के व्रत का है महत्व
स्त्री के बारे-बार मना करने पर, कुटुम्बीजनों से चिन्तित रहने तथा बुढ़ापे के कारण अनेक रोगों से पीड़ित होने पर भी वह अपने धर्म-कर्म तथा दान-पुण्य से विमुख न हुआ। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना । अक्षय तृतीया के दान के प्रभाव से ही वह बहुत धनी तथा प्रतापी बना। वैभव सम्पन्न होने पर भी उसकी बुद्धि कभी धर्म के विचलित नहीं हुई। अक्षय तृतीया के व्रत तथा दान आदि का बड़ा माहात्म्य है।
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