यूपी में हाल ही में हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी (SP) की हार जरूर हुई है लेकिन इसे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की हार आप नहीं मान सकते हैं। 2017 के मुकाबले इस बार पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है। अखिलेश की छवि जैसी पहले लोगों के दिल में थी, अब भी वैसी ही है। किसी भी चुनाव में हार के कई कारण होते हैं। लेकिन फिलहाल इतना समझना होगा कि इस हार के बावजूद अखिलेश ना सिर्फ यूपी की राजनीति में बल्कि केंद्र की राजनीति में भी रेस में बने हुए हैं और लंबे समय में वे पीएम के भी सबसे योग्य और मजबूत कैंडिडेट हैं।
जब मैं यह लिख रहा हूं तो आप कहेंगे क्यों हवा में बातें कर रहे हैं। इसके पीछे क्या गणित है। तो चलिए आपको यह गणित भी समझाता हूं। आपको वह सारे प्वाइंट गिनवाता हूं जिससे आने वाले भविष्य में अखिलेश यादव पीएम की रेस में शामिल होंगे।
युवा चेहरों में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का फ्लॉप होना
बीजेपी के विपक्ष के रूप में कांग्रेस बुरी तरह से फेल है। युवा चेहरों की बात करें तो राहुल गांधी अब तक उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं। उनके मुकाबले अब लोग राजनीतिक रूप से अखिलेश यादव को कहीं अधिक परिपक्व मान रहे हैं। ऐसे में अगर ऐसी स्थिति आती है जब पूरा विपक्ष साथ आएगा तो राहुल की जगह अखिलेश पर लोग ज्यादा भरोसा दिखाएंगे।
ममता (Mamata Banerjee) का भी है अखिलेश (Akhilesh Yadav) को सपोर्ट
इस समय पूरे विपक्ष में सबसे मजबूत चेहरा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। ममता अखिलेश को कितना मानती हैं, वह किसी से छिपा नहीं है। इस चुनाव में भी उन्होंने अखिलेश के लिए चुनाव प्रचार किया। ऐसे में लंबे समय में जब अखिलेश पीएम की रेस में होंगे तो ममता पूरी तरह से उनके समर्थन में होंगी।
यूपी जैसा बड़ा राज्य देगा अखिलेश को फायदा
अखिलेश अभी हारे हैं लेकिन निश्चित रूप से अभी उनके पास काफी वक्त है। वह मेहनत करेंगे और अगर यूपी में सत्ता में आ जाते हैं तो फिर देश के सबसे बड़े सूबे के सीएम होंगे। ऐसी स्थिति में केंद्र में जब बात आएगी तो स्वाभाविक रूप से वह सबसे प्रबल दावेदार होंगे।
समाजवाद के सबसे युवा चेहरा, बेदाग छवि
अगर बात बेदाग छवि की हो तो इसमें अखिलेश पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। उनके किए काम को भी यूपी में सराहना मिलती रही। उनका स्वभाव भी अच्छा है और लोग उन्हें मानते हैं। ऐसे में समाजवाद के इस सबसे युवा चेहरे को बेदाग छवि के साथ केंद्र में पीएम के रेस में आने पर पूरे विपक्ष में किसी को आपत्ति भी नहीं होगी।
केजरीवाल (Arvind Kejriwal) का छोटे राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना
अब कई लोग कह रहे हैं कि केजरीवाल भी तो ऑप्शन हो सकते हैं। निश्चित रूप से वह भी एक विकल्प हैं लेकिन अभी उनकी पार्टी छोटे राज्यों में अपने मिशन पर लगेगी। वे अलग-अलग पॉकेट में जीत दर्ज करना चाहेंगे। और उनका मॉडल अगर एक जगह भी फ्लॉप हुआ तो फिर उन्हें भी झटका लग सकता है। ऐसे में फायदा अखिलेश को होगा।
विधानसभा सीट छोड़ने का मतलब भी केंद्र में चाहते हैं खुद को
कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव भले ही विधानसभा चुनाव जीते हैं लेकिन वह खुद इस सीट पर नहीं बने रहेंगे। वह विधायक की जगह सांसद बने रहना चाहते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वह खुद को आगे केंद्र की राजनीति के लिए मजबूत कर रहे हैं। ऐसे में यह भी संकेत दे रहा है कि राज्य की बजाए लंबे समय में अखिलेश केंद्र की राजनीति को तवज्जो अधिक देंगे।