होलिका दहन (holika dahan) को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। ज्यादातर लोगों को प्रहलाद की कहानी मालूम है। कहा जाता है कि होली को प्रहलाद की बुआ होलिका से ही जोड़कर देखा भी जाता है। हर कोई वह कहानी जानता है। लेकिन एक कहानी इसके साथ और है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।
आइए होलिका दहन से जुड़ी यह कहानी आपको सुनाते हैं। इस कहानी को भगवान विष्णु ने युधिष्ठिर को सुनाया था। युधिष्ठिर इस कहानी को सुनने के लिए काफी बेताब भी थे। यह कहानी उन्हें पसंद भी आई थी।
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यह कहानी भगवान राम के कुल से जुड़ी है
इस कहानी को शुरू करने से पहले आपको यह बता दें कि यह कहानी भगवान राम के कुल से जुड़ी है। आप पूछेंगे कि भगवान राम से, कैसे तो चलिए हम आपको आगे बताते हैं।
राम के पूर्वज रघु के समय की है बात
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह कहानी सुनाते हुए कहा, यह उस समय कि बात है जब महाराज रघु शासन किया करते थे। सूर्यवंशी रघु के शासन में एक ऐसी असुर नारी थी जिससे संपूर्ण समाज अक्रांत हो गया था। उसे सुरक्षा कवच प्राप्त था ऐसे में कोई उसे मार भी नहीं पाता था। वह नगरवासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करती थी। राजा भी इससे दुखित थे।
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गुरु वशिष्ठ ने बताई उसे मारने की योजना
जब सब लोग उस असुर नारी से हार गए तब सब गुरु वशिष्ठ के शरण में गए। गुरु ने तब उन्हें बताया कि उसे सिर्फ एक ही तरीके से मारा जा सकता है और वह हैं नादान बच्चे जो भगवान का रूप होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे गांव के बाहर लकड़ी-खास आदि इकट्ठा करके उसमें आग लगाकर उसके चारों तरफ नाचे तो वह असुर नारी मर जाएगी। इसके बाद ऐसा ही किया गया।
तब से मनाई जाता है यह उत्सव
कहा जाता है कि उस राक्षसी के मौत के बाद पूरा नगर खुशी से झूम उठा। लोगों ने रात को इसे जलाने के बाद सुबह खुशी-खुशी एक-दूसरे से मिले और एक दूसरे को मुबारकबाद दी। इस खुशी के मौके को भी होली से जोड़कर देखते हैं।