December 22, 2024

अनंत चतुर्दशी का व्रत कैसे करें, anant chaturdashi ko kya karna chahiye, अनंत चतुर्दशी पर क्या ना करें

दोस्तों आज एक नई जानकारी आपके लिए लाए हैं। अनंत चतुर्दशी क्या होता है? anant chaturdashi ko kya karna chahiye? आपको बता दें कि इस दिन भगवान् विष्णु की पूजा होती है । इस दिन की पूजा का शास्त्रों में विशेष महत्व है। यही वजह है कि हर कोई गूगल पर सर्च करता है कि अनंत चतुर्दशी को क्या खाना चाहिए? अनंत चतुर्दशी व्रत क्यों किया जाता है? कैसे करें अनंत चतुर्दशी का व्रत? इस आर्टिकल में आपको इन सबके बारे में जानकारी मिल जाएगी। तो चलिए शुरू करते हैं। 

आपको बता दें कि इस दिन उदया तिथि ग्रहण की जाती है । इस व्रत के नाम से लक्षित होता है कि यह दिन उस अंत न होने वाले सृष्टि के कर्त्ता निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का दिन है ।

इस दिन भक्तगण लौकिक कार्यकलापों से मन को हटा कर ईश्वर भक्ति में अनुरक्त होते हैं। इस दिन वेद- ग्रंथों का पाठ करके भक्ति की स्मृति का डोरा बांधा जाता है ।

व्रत की विधि और पूजा

इस व्रत की पूजा दोपहर को की जाती है । इस दिन व्रती लोग स्नान करके कलश की स्थापना करते है । कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुशा से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है । इसके पास कुंकुम, केसर या हल्दी रंजित चौदह गांठो वाला ‘अनंत’ भी रखा जाता है ।

कुशा के अनंत की वंदना करके, उसमे विष्णु भगवन का आह्वान तथा ध्यान करके गंध, अक्षत, पुष्प, धुप, तथा नैवेद्य से पूजन किया जाता है ।इसके बाद अनंत देव का पुनः ध्यान करके शुद्ध अनंत को अपनी दाहिनी भुजा पर बांधना चाहिए । यह डोरा भगवन विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फलदायक माना जाता है ।

यह व्रत धन पुत्रादि की कामना से किया जाता है । इस दिन नवीन सूत्र के अनंत को धारण करके पुराने को त्याग देना चाहिए । इस व्रत का पारण ब्राह्मण को पूरा दान करके करना चाहिए । अनंत की चौदह गांठे चौदह लोकों की प्रतीक है । उनमें अनंत भगवान विद्यमान है । इस व्रत की कथा सामूहिक परिवार में कहनी चाहिए ।

अनंत चतुर्दशी की कथा

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। यज्ञमंडप का निर्माण सुन्दर तो था ही अद्भुत भी था। उसमें जल में स्थल तथा स्थल में जल की भ्रांति होती थी। उस यज्ञ मण्डप में घूमते हुए दुर्योधन एक तालाब में स्थल के भ्रम में गिर गए। भीमसेन तथा द्रौपदी ने ‘अंधों की संतान अंधी’ कह कर उनका उपहास किया। इससे दुर्योधन चिढ़ गया।

उसके मन में द्वेष पैदा हो गया। उसने बदला लेने के विचार से पांडवों को जुए में पराजित कर दिया। पराजित होकर पांडवों को बारह वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा। वन में रहते हुए पांडव अनेक कष्ट सहते रहे। एक दिन वन में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से अपना दुःख कहा तथा दुःख के दूर करने का उपाय पूछा।

श्रीकृष्ण ने कहा, “हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो। इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जाएगा। तुम्हें गया हुआ राज्य भी मिलेगा। ” इस सन्दर्भ में एक कथा सुनाते हुए बोले वे – “प्राचीन काल में सुमन्तु नाम के ब्राह्मण की परम सुन्दरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी सुशील कन्या थी।

ब्राह्मण ने उसका विवाह कौण्डिन्य ऋषि से कर दिया। कौण्डिन्य ऋषि सुशीला को लेकर अपने आश्रम की ओर चले तो रास्ते में ही रात हो गई। वे एक नदी के तट पर सन्ध्या करने लगे। सुशीला ने देखा — वहाँ पर बहुत-सी स्त्रियाँ सुन्दर-सुन्दर वस्त्र धारण करके किसी देवता की पूजा कर रही हैं। सुशीला ने पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बता दी। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान करके चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांधा और अपने पति के पास आ गई।

कौण्डिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात स्पष्ट कर दी। कौण्डिन्य सुशीला की बातों से प्रसन्न नहीं हुए। उन्होंने डोरे को तोड़ कर आग में जला दिया। यह अनंत जी का अपमान था। परिणामतः कौण्डिन्य मुनि दुखी रहने लगे। उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का कारण पूछने पर सुशीला ने डोरे जलाने की बात दोहराई। पश्चाताप करते हुए ऋषि अनंत की प्राप्ति के लिए वन में निकल गए।

जब वे भटकते-भटकते निराश होकर गिर पड़े तो अनंत जी प्रकट होकर बोले, “हे कौण्डिन्य! मेरे तिरस्कार के कारण ही तुम दुःखी हुए। तुमने पश्चाताप किया है। मैं प्रसन्न हूँ। घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्ष पर्यन्त व्रत करने से तुम्हारा दुःख दूर हो जाएगा। तुम्हें अनन्त सम्पत्ति मिलेगी। कौण्डिन्य ने वैसा ही किया। उसे सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनन्त-भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक निष्कंटक राज्य करते रहे। ( कथा समाप्त )

अनंत चतुर्दशी को क्या खाना चाहिए?

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु को खीर का भोग लगाना चाहिए। तुलसी के पत्ते के साथ इसका भोग लगाने से भगवान खुश होते हैं। इसी भोग को भक्त को सबसे पहले ग्रहण करना चाहिए। इसके बाद ही अन्य खाना खाना चाहिए। वैसे अगर आप व्रत रखें तो और भी अच्छा है। क्योंकि इस दिन नमक नहीं खाने वाले की हर मनोकामना भगवान विष्णू पूरी करते हैं।

चतुर्दशी को क्या नहीं खाना चाहिए?

तिल का तेल और दही का सेवन नहीं करना चाहिए। कांसे के बर्तन में नहीं खाना चाहिए। बाकी सब ठीक है क्योकि भगवान विष्णु का दिन है।

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