November 22, 2024

इस दिन पुण्य नक्षत्र में सुभद्रा समेत भगवान के रथ की यात्रा निकालने का विधान है। वैसे तो यह त्यौहार सारे देश में मनाया जाता है पर जगन्नाथ पुरी में इस त्यौहर के मनाने की विशेष विशेषता है।

इस त्यौहार का विशेष सम्बन्ध भी जगन्नाथ पुरी से ही है। जगन्नाथ पुरी भारत के प्रमुख चार धामों में से एक है। यह मन्दिर भारतीय शिल्पकला का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया था। इस तीर्थ की विशिष्टता यह है कि यहाँ जातीय बन्धनों का कतई पालन नहीं होता। इस मन्दिर की देव प्रतिमाओं को वर्ष में एक बार मंदिर से बाहर भी लाया जाता है और नगर की रथ यात्रा कराई जाती है। रथ को खींचने का अधिकार चाण्डाल तक को भी है।जगन्नाथ पुरी में जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित गोवर्धन पीठ भी है। इसके अतिरिक्त वैष्णव, शैव, शाक्त आदि सभी सम्प्रदायों के यहाँ मठ विद्यमान हैं। रथ यात्रा के दिन देश के कोने-कोने से इकट्ठे होकर लोग यहाँ पहुँचते हैं।

श्री जगन्नाथ जी का रथ ४५ फुट ऊँचा ३५ फुट लम्बा तथा इतना ही चौड़ा होता है। इसमें ७ फुट व्यास के १६ पहिए होते हैं। बलभद्र जी का रथ ४४ फुट ऊँचा होता है जिसमें १२ पहिए होते हैं। सुभद्रा जी का रथ ४३ फुट ऊँचा होता है इसमें भी १२ पहिए होते हैं। ये रथ प्रतिवर्ष नये बनाए जाते हैं। मन्दिर के सिंह द्वार पर बैठ कर भगवान जनकपुरी की ओर रथ यात्रा करते हैं। इन रथों को खींचने वाले मनुष्यों की संख्या लगभग ४२०० होती है। जनकपुरी पहुँच कर तीन दिन तक भगवान वहीं ठहरते हैं। वहाँ उनकी भेंट लक्ष्मी जी से होती है। इसके पश्चात् लौट कर भगवान पुनः जगन्नाथ पुरी में अपने आसन पर सुशोभित होते हैं।

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