इस दिन काली गाय तथा काले तिलों के दान का माहात्म्य । शरीर पर तिल तेल मर्दन, तिल-जल स्नान, तिल-जलपान तथा तिल-पकवान इस व्रत के विशिष्ट उपादान हैं। इस दिन तिलों का हवन करके रात्रि जागरण किया जाता है। इस पर्व का माहात्म्य भी श्री कृष्ण ने नारद जी को बताया था।
कथा – एक ब्राह्मणी थी। उसने तपस्या करके अपना शरीर सुखा डाला। उसके तप से प्रसन्न होकर प्रभु भिखारी के रूप में उसके घर भीख मांगने गए। ब्राह्मणी ने आक्रोश में आकर उनके भिक्षा पात्र में मिट्टी का ढेला डाल दिया। मरणोपरांत, बैकुण्ठ में उसे रहने के लिए मिट्टी का स्वच्छ तथा आलीशान मकान दिया गया। उसके लिए खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। यह सब देखकर उसे दुःख हुआ। उसने सोचा- मैंने इतना कठोर तप भी किया पर फिर भी मुझे यहाँ खाने-पीने के लिए कुछ भी क्यों उपलब्ध नहीं। उसने प्रभु से इसका कारण पूछा। प्रभु कहा – “इसका कारण देवांगनाओं से पूछो। ” देवांगनाओं ने “तुमने षटतिला एकादशी का व्रत नहीं किया है। ” उसे बताया- ‘ ब्राह्मणी ने पुनः षटतिला’ का व्रत किया और स्वर्ग के सारे सुखों का उपभोग किया।