इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से भगवान राम ने अवतार लिया था। भारतीय जीवन में यह दिन पुण्य का पर्व माना जाता है। महाकवि तुलसीदास ने भी इसी दिन से ‘रामचरितमानस की रचना आरम्भ की थी। इस दिन पुण्य-सलिला सरयू में अनेक लोग स्नान करके पुण्य लाभ कमाते हैं।
चैत्रमासीय नवरात्र को ‘वासंतीय नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन के व्रत का पारण दशमी को करना चाहिए। नवमी की रात्रि को रामचरितमानस का पाठ तथा श्रवण करना चाहिए। दशमी को भगवान राम का सविधि पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन करा कर वस्त्रों, आभूषणों तथा खाद्यान्नों का दान करना चाहिए।
वास्तव में नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र मिलने पर ही यह पर्व होता है। पुनर्वसु नक्षत्र के न मिलने पर यदि दोपहर में नवमी मिले तो भी यह पर्व माना जाता है। इस दिन कई लोग दोपहर तक व्रत रखते हैं। किन्तु व्रत का यह विधान शास्त्रानुमोदित नहीं है। व्रत पूरे आठ पहर का ही होना चाहिए। इस व्रत को करके हमें मर्यादापुरुषोत्तम के चरित्र के आदर्शों को अपनाना चाहिए। भगवान राम की गुरुसेवा, जाति-पांति का भेदभाव मिटाना, शरणागत की रक्षा, भ्रातृ प्रेम, मातृ-पितृ भक्ति, एकपत्नी व्रत, पवनसुत हनुमान तथा अंगद की स्वामिभक्ति, गिद्धराज की कर्तव्यनिष्ठा तथा गुह केवट आदि के चरित्रों की महानता को अपनाना चाहिए। भगवान लोकमंगल का संदेश देते हैं।