‘श्रावण पूर्णिमा’ को कजरी पूर्णिमा भी कहते हैं। श्रावणी कर्म तथा रक्षा बन्धन भी इस दिन मनाए जाते हैं। बुंदेलखंड में श्रावणी पूर्णिमा के दिन सायंकाल को कजरी का जुलूस निकाला जाता है। पूर्णिमा से एक सप्ताह पूर्व श्रावण शुक्ला नवमी को कजरी बोई जाती है। सात दिन तक निरन्तर सायंकाल के समय धूप तथा आरती की जाती है। गेहूँ या जौ को बोकर ऐसे स्थान पर रखते हैं जहां धूप हवा की विशेष गति न हो। हवा तथा धूप न लगने से कजरी का रंग पीला रहता है। इस कजरी बोने वाली नवमी का नाम ही ‘कजरी नवमी’ है।
जिनके यहाँ कजरी बोई जाती है वहाँ पुत्रवती स्त्री व्रत रखती है। उस दिन गाँव की स्त्रियाँ कजरी बोने के लिए किसी विशेष स्थान से मिट्टी लाने जाती हैं। उस स्थान पर छोटा मेला-सा लग जाता है। यह मिट्टी दोनों या खप्परों में भरी जाती है। जिस कोठे में कजरी रखनी होती है वहाँ दीवार पर भगवती का प्रतिमा सूचक चित्र बनाया जाता है। उसके पास हल्दी से मढ़ी या मकान, बालक सहित पलना, नेवले का एक बच्चा तथा स्त्री का चित्र भी चित्रित किया जाता है। इसी चित्रकारी का नाम ‘नवमी’ है। इस नवमी की पूजा करके स्त्रियाँ कजरी बोती हैं, गीत गाती हैं तथा कथा कहती हैं।
कथा- (१) एक बाँझ स्त्री ने नेवला पाल रखा था। उस नेवले को वह पुत्र के समान समझती थी। भगवान की कृपा से वह गर्भवती हो गई। नौ मास बाद उसने सुन्दर बालक को जन्म दिया। पुत्रवती होने पर भी उसने नेवले के प्यार को कम नहीं होने दिया। नेवले को वह बड़ा पुत्र मानती रही।
एक दिन उसने अपने पुत्र को पालने में लिटाया और जल भरने चल दी। बालक की रक्षा के लिए नेवला वहाँ रहा। उसके चले जाने के बाद एक काला अजगर मकान के किसी कोने से निकला और पालने की ओर झपटा। नेवला उससे भिड़ गया। काफी देर लड़ने के बाद नेवले ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
जब वह स्त्री पानी भर कर लौटी तो नेवला अपनी बहादुरी का प्रदर्शन करने के भाव से उसकी तरफ लपका। स्त्री ने नेवले को खून से लथपथ देखकर अनुमान लगाया कि इसने उसके बेटे को मार डाला है। उसने आव देखा न ताव पानी से भरा घड़ा धड़ाम से नेवेले पर दे मारा। नेवला वहीं दम तोड़ गया। जब वह भीतर कमरे में गई तो दृश्य देखकर बड़ी हैरान हुई।
उसका बच्चा पालने में सो रहा है। पास ही काला अजगर टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त होकर मरा पड़ा है। उसे अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह अपनी मूर्खता पर सारा दिन रोती रही। दैवयोग से उस दिन श्रावण शुक्ला नवमी थी। दोपहर के बाद उसकी पड़ोसिनें कजरी बोने की मिट्टी लाने के लिए आयीं। वह रो रही थी। स्त्रियों ने कारण पूछा तो उसने सारी घटना कह दी। स्त्रियों ने उसे खूब समझाया। उसने उस दिन भोजन भी नहीं किया था। स्त्रियों ने उसे समझाया, “इस प्रकार आज तेरा नवमी का व्रत हो गया। हमारे साथ चलो। मिट्टी ले आएँ । जहाँ नवमी लिखी जाएगी वहाँ नेवले की वीरता तथा स्वामी भक्ति का चित्र बना कर पूजन करो। हम भी प्रति नवमी इस नेवले की पूजा किया करेंगी।” इस प्रकार उस स्त्री ने सारी स्त्रियों से मिलकर नवमी पूजन किया। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। इस दिन दुर्गा की अराधना तथा पूजा भी की जाती है।
कथा – (२) एक स्त्री का नाम ‘कारीबहू’ था। एक बार कजरी नवमी के दिन उसने पड़ोसिनों से पूछा कि आज के दिन क्या करना चाहिए। पड़ोसिनों बताया – “आज व्रत करके सायंकाल में नवमी के पूजन तथा दान-पुण्य का विशेष माहात्म्य है। ” घर पहुँच कर वह चादर लपेट कर चारपाई पर लेट गई। दोपहरी हो गई। पति देव लौट कर आए तो खाना नहीं बना था। उन्होंने कारण पूछा तो वह बोली, “आज मेरा व्रत है। पति बेचारा बार-बार भोजन बनाने का आग्रह करता रहा पर वह अपने प्रण से न टली। अन्त में पति देवता, पत्नी की नजर बचा कर कोठरी में छिप गए। पति को गया जानकर वह स्त्री उठी। बाजार से दो गन्ने लाकर चूसने लगी। फिर उसने दो रोटियाँ बनाई और उन पर घी लगाकर खा गई। थोड़ी देर बाद उसने घी तथा शक्कर से सेवइयाँ बना कर खाईं। इतने पर भी जब उसकी भूख शांत न हुई तो उसने खिचड़ी बनाई और घी डालकर खाने लगी। इस प्रकार भली-भाँति पेट-पूजा करके वह नवमी के
पूजन की तैयारी में लग गई। वह नवमी लिखना नहीं जानती थी। उसने गोबर घोला और दीवार पर पोत दिया। फिर स्नान करके नवमी को पूजा करने बैठ गई। पूजन में बैठ कर कहने लगी, “नवमी माई बिढ़ई खाएगी। ?”
कोठरी के भीतर बैठे उसके पति ने उत्तर दिया- “हूँ!” यह सुनकर वह आश्चर्यचकित रह गई कि नवमी बोलती क्यों है?” उसने फिर कहा, “नौ बासी, नौ तासी के चूरे खाएगी?” कोठरी से फिर आवाज आई- “हूँ।”
तब उसने गाँव में जाकर स्त्रियों से कहा, “मेरी पूजा से प्रसन्न होकर मेरी नवमी मुझसे बातें कर रही है। मैं जो पूछती हूँ उसका जवाब देती है। स्त्रियों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने पूछा, “तुमने कैसी नवमी लिखी है जो बोलती है?”
उसने कहा, “मैं नवमी लिखना तो जानती नहीं। मैंने तो सिर्फ गोबर से पोत दिया था।”
सारी स्त्रियाँ उसके घर पहुंच गई। उन्होंने नवमी से प्रश्न किया, “नवमी माई नौ बिढई खाएगी?” कोठरी से तुरन्त उत्तर मिला— “हूँ। ” इस पर स्त्रियों को ईर्ष्या होना स्वाभाविक था। वे तो बड़े श्रद्धा भाव से नवमी का पूजन करती थीं फिर भी उनकी नवमी बोलती न थी। इस फूहड़ औरत की नवमी बोलती है। यह आश्चर्यजनक बात थी।
स्त्रियाँ लौट गई। उस फूहड़ औरत ने बिढ़ई भी खा ली। फिर वह चारपाई पर बिस्तर लगा कर लेट गई। सायंकाल के समय उसका पति कोठरी से निकल बाहर होकर खांसता-खांसता घर के भीतर आया। उसने दरवाजा खटखटाया।
पत्नी ने करवट बदल कर भीतर से कहा, “आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। कैसे उठू?” करवट बदलते ही चारपाई चरचराई तो बोली- “सुनते नहीं हो मेरी पसलियाँ बोल रही हैं। “
पति देव किसी न किसी तरह किवाड़ खोल कर भीतर आये। स्त्री ने पूछा, “तुम जिस गाँव जाने वाले थे, वहाँ गए या नही?”
पुरुष ने उत्तर दिया, “नहीं गया। रास्ते में एक बड़ा सर्प मिल गया था, इसी से लौट आया।
स्त्री ने पूछा, “साँप कितना बड़ा था?”
पुरुष ने कहा, “जितना बड़ा गन्ना होता है।
स्त्री ने फिर पूछा, “वह सरकता कैसे था?” पुरुष ने कहा, “जैसे खिचड़ी में घी। “
इतना कह उसने स्त्री को सिर के बालों से पकड़ कर घसीट-घसीट कर पीटना शुरू कर दिया। वह बेहोश हो गई। उसका रोना-चिल्लाना सुनकर पड़ोसिने वहाँ आ पहुँचीं। स्त्रियों ने कारण पूछा।
वह बोली – “क्या बताऊं? नवमी की पूजा हुई और क्या हुआ?”