November 21, 2024

शास्त्रों में मतैक्य न होने पर भी चैत्र शुक्ला पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मदिवस मनाया जाता है। इस पुण्यतिथि को माता अंजना के गर्भ से पवनसुत हनुमान जी का जन्म सूर्योदय से पूर्व ही हुआ था ।

इस दिन का व्रत सर्वोत्तम माना गया है। इस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करके भगवान बजरंगबली की उपासना करनी चाहिए। अखाड़ों का श्रीगणेश करने के लिए यह दिन शुभ माना गया है। इस दिन महावीर जी पर सिंदूर चढ़ाकर, हनुमान चालीस का पाठ करके लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। प्रातःकाल में छोटे-छोटे लौकड़ों (लड़कों) को लड्डू परोस कर भोजन करना चाहिएं। ऐसा करने वाला दीर्घायु होता है। उसके शारीरिक कष्ट दूर होते हैं । इस दिन बजरंगबली की पूजा करके घड़ा तथा आटा दान करने का भी विधान है।

महाबली हनुमान बल की साक्षात् मूर्ति थे। ब्रह्मचर्य उनके जीवन की विशेषता थी। लोक-मंगल के लिए ही उन्होंने अवतार लिया था। विद्या, बुद्धि तथा विविध कलाओं के कर्त्ता हनुमान अनन्य राम भक्त तथा सेवक थे। इनके पिता का नाम केसरी था। ‘रामचरित’ में हनुमान ने राम का सेवक तथा भक्त होने के नाते जो भूमिका निभाई है वह बेजोड़ है। हनुमान जी की सेवा तथा भक्ति भावना के जिस विशिष्ट दृष्टांत का प्रायः उल्लेख किया जाता है वह इस प्रकार है

लंका पर विजय करने के बाद अवध में राम का राज्याभिषेक हो रहा था। सीता जी ने हनुमान जी की सेवा पर प्रसन्न होकर उन्हें मणियों की माला दी। हनुमान जी माला के मनकों को दांतों से तोड़-तोड़ कर कुछ देखने लगे। यह सब लक्ष्मणजी को बहुत बुरा लगा। उन्होंने सोचा-‘बन्दर है, यह क्या जाने माणिक क्या होते हैं?’ आखिर उनसे रहा न गया और हनुमान जी से पूछ ही लिया, “हनुमान! तुम इन कीमती मोतियों दांतों से तोड़-तोड़ कर क्या देख रहे हो? क्या तुम्हें मोतियों के मूल्य की परख नहीं है?”

हनुमान जी ने उत्तर दिया, “सुना है मेरे राम सर्वत्र विराजित रहते इसीलिए इन मणियों में भगवान दर्शन करने की इच्छा से इन्हें तोड़ रहा हूँ। ” श्री लक्ष्मण क्रोधी स्वभाव के तो थे ही। तपाक से बोले, “क्या तुम्हारे कलेजे में भी राम छिपे हैं?” इतना कहना ही था कि राम के सच्चे भक्त ने तेज नाखूनों के प्रहार से कलेजा निकाल कर दिखा दिया। सचमुच वहाँ सीता और राम विराजित थे। तो ऐसे थे हनुमान राम के उपासक इसीलिए इन शब्दों से उनका स्मरण करते हैं

‘मनोजवं मारुत तुल्य वेगं

जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।

वातात्मजं वानर यूथ मुख्यं

श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये ।।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *