यह एकादशी “मोक्षदा एकादशी” के नाम से भी विख्यात है। इस दिन ‘गीता जयन्ती मनाई जाती है। इस दिन कुरुक्षेत्र की रणस्थली में कर्म से विमुख हुए अर्जुन को भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। गीता संजीवनी विद्या है। गीता के जीवन दर्शन के अनुसार मनुष्य महान है। अमर है । असीम शक्ति का भंडार है।
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा, भगवान! मैं नहीं लडूंगा। अपने बन्धु-बांधवों तथा गुरुओं का संहार करके राजसुख भोगने की मेरी इच्छा नहीं है। ” यही अर्जुन कुछ क्षण पूर्व कौरवों की सारी सेना को धराशायी करने के लिए संकल्प कर चुका था। परिस्थतिवश अधीर होकर कर्म से विमुख हो गया। कर्त्तव्य विमुख अर्जन को जो उपदेश दिया गया वही तो गीता है।
गीता की गणना विश्व के महान ग्रन्थों में की जाती शंकराचार्य से लेकर श्री विनोबा भावे तक के महान साधकों ने । श्री गीता के महत्व को स्वीकारा है। श्री लोकमान्य तिलक ने गीता से ‘कर्मयोग’ लिया। इस गीता के आधार पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ‘अनासक्ति योग’ का प्रतिपादन किया। गीता के महत्व का प्रतिपादन करते हुए महात्मा गांधी जी ने लिखा है, “जब मैं किसी विषय पर विचार करने में असमर्थ हो जाता हूँ तो गीता से ही मुझे प्रेरणा मिलती है। महामना पं० मदनमोहन मालवीय के अनुसार गीता अमृत है। इस अमृत का पान करने से व्यक्ति अमर हो जाता है। गीता का आरम्भ धर्म से तथा अन्त कर्म से होता है। गीता मनुष्य को प्रेरणा देती है। मनुष्य का कर्त्तव्य क्या है?’ इसी का बोध करवाना गीता का लक्ष्य है। इसी आधार पर अर्जुन ने स्वीकारा था—– “भगवान! मेरा मोह क्षय हो गया है। अज्ञान से मैं ज्ञान में प्रवेश पा गया हूँ। आपके आदेश का पालन के लिए मैं कटिबद्ध हूँ।”
गीता कुल अठारह अध्याय हैं। महाभारत का युद्ध भी अठारह दिन तक ही चला था। गीता के कुल श्लोकों की संख्या ७०० है। भगवद्गीता में भक्ति तथा कर्मयोग का सुन्दर समन्वय इसमें ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ज्ञान की प्राप्ति पर ही मनुष्य की शंकाओं का वास्तविक समाधान होता है। इसीलिए गीता सर्वशास्त्रमयी है। योगीराज श्रीकृष्ण का मनुष्यमात्र को उपदेश है— कर्म करो। तुम्हारा कर्त्तव्य कर्म करना ही है। फल की आशा मत करो। फल को दृष्टि में रखकर भी कर्म मत करो। कर्म करो पर निष्काम भाव से। फल इच्छा से कर्म करने वाला व्यक्ति विफल होकर दुखी होता है। अस्तु लक्ष्य की ओर प्रयास रत रहना ही अच्छा है
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।।
इस प्रकार गीता ‘सर्वभूतेहितेरतः’ बनने के लक्ष्य को उजागर करती है।”
इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्याद आदि का विधिपूर्वक पूजन करके ‘गीता जयन्ती’ का समारोह मनाना चाहिए। गीता पाठ तथा गीता पर प्रवचन-व्याख्यानादि का आयोजन करना चाहिए।