November 22, 2024



प्रदोष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। प्रदोष व्रत को काफी फलकारी माना जाता है। कलियुग में भगवान शिव के सबसे अधिक आशीष आप चाह रहे हैं तो फिर प्रदोष व्रत से बेहतर कुछ नहीं है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव से प्रदोष को जोड़ा जाता है। हालांकि आप किसी भी अपने इष्टदेव के साथ इस व्रत को कर सकते हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन यानी त्रयोदशी को होता है।


कब पड़ता है प्रदोष का व्रत
त्रयोदशी तिथि के शाम के समय को प्रदोष काल कहते हैं। इस काल को काफी अहम माना जाता है। इस समय को काफी मंगलकारी और शिव कृपा योग्य मानते हैं।

क्या है मान्यता
प्रदोष के पीछे मान्यता है कि प्रदोष के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपना भाव भंगिमा पूर्ण नृत्य करते हैं। सभी देवता लोग उनके नृत्य को देखते और सराहते हैं। धार्मिक मान्यता है कि यह व्रत आपके हर प्रकार के दोष को मिटा देता है।

क्या है सही विधि प्रदोष व्रत की
प्रदोष व्रत के लिए सबसे सही विधि है कि आप निराहार रहकर व्रत करें। ऐसा करने से आपको सारा पुण्य मिल जाता है। अगर संभव नहीं है तो कुछ अल्पाहार करके आप इस व्रत को रखें। महिलाएं यह व्रत जरूर करें।

सप्ताह के सातों दिन है व्रत का महत्व
प्रदोष ऐसा व्रत है जो जिस भी दिन पड़े उसी दिन इस व्रत को कर सकते हैं। यह हर दिन में लाभयादी व्रत है। कहा जाता है कि हर दिन इस व्रत को करने का अपना अलग महत्व है। जैसे रविवार को अगर आप यह व्रत करते हैं तो फिर हमेशा ही आप स्वस्थ रहेंगे। उसी तरह से सोमवार को व्रत करने से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है। मंगलवार को निरोगी काया मिलता है। बुधवार को सभी मनोकामना पूर्ण होती है। गुरुवार को शत्रु विनाश होता है। शुक्रवार को दांपत्य जीवन सुखमय होता है। शनिवार को संतान प्राप्ति के लिए सबसे बेहतर होता है।

प्रदोष काल कब होता है
धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले का पहर प्रदोष काल होता है। शास्त्रों के अनुसार, सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद के समय को प्रदोष काल कहना अधिक उत्तम होगा।

प्रदोष व्रत कैसे करें
प्र
दोष व्रत करने के लिए उस दिन सुबह जल्दी उठें। उठकर स्नान करने के बाद भगवान भोले का स्मरण करें।

इसके बाद निराहार रहकर पूजा की तैयारी करें।

भगवान शिव का फोटो सामने रखें और पूरे भाव से प्रभु के भजन के लिए बैठ जाएं।

आसपास के लोगों को भी अपने साथ पूजन में शामिल करें।

पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और रंगोली बनाएं।

कुशा के आसन पर बैठें और ओम नम: शिवाय का मंत्रोच्चार करें।

पूजा के बाद भगवान की कथा और आरती करें।

इसके बाद सबको प्रसाद बांटें।

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