दोस्तों, इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर देश में कुंभ कितने प्रकार के होते हैं? ये कुंभ कब-कब लगते हैं? इनकी विशेषता क्या होती है? इन कुंभों का महत्व क्या है? इनकी उपयोगिता क्या है? कुंभ से जुड़े हर सवाल का जवाब आपको इस लेख में मिल जाएगा। तो चलिए शुरू करते हैं।
दोस्तों, क्या आपको पता है कि अपने देश में कुंभ कितने प्रकार का लगता है। या यूं कहें कि कुंभ कितने प्रकार का होता है। अक्सर आपने सुना होगा कि प्रयागराज में महाकुंभ लग रहा है या हरिद्वार में इस साल कुंभ का आयोजन होगा। तो आपके मन में जरूर आता होगा कि आखिर एक कुंभ और दूसरा महाकुंभ क्यों कहा जा रहा है? कई लोगों के मन में ऐसे सवाल पैदा होते हैं, उन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए हम ये आर्टिकल आपके लिए लाए हैं। तो चलिए सबसे पहले समझते हैं कि कुंभ कितनेे तरह के होते हैं।
कितने तरह के होते हैं कुंभ
दोस्तों, अपने देश में तीन तरह के कुंंभ होते हैं. मोटे तौर पर इन्हें तीन भागों में बांटा गया है। अगर आप इसके भीतर जाएंगे तो इनके और भी भाग हो सकते हैं। लेकिन मोटे तौर पर तीन कुंभ होते हैं।
1- अर्ध कुंभ
2- कुंभ
3- महाकुंभ
कुंभ का अर्थ क्या होता है
दोस्तों, सबसे पहले तो हमें यह समझना है कि आखिर कुंभ का अर्थ क्या होता है। कुंभ कहते किसे हैं? अगर हम ये समझ जाएं तो फिर हमारे लिए आगे की समझ आसान हो जाएगी। कुंभ दिमाग में आते ही हमें संगम किनारे की भीड़ या गंगा नदी में डुबकी लगाते श्रद्धालु दिखते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कि आखिर कुंभ का अर्थ क्या होता है। इसके मायने क्या हैं? क्यों इसे कुंभ ही कहा जाता है। तो चलिए इसे जान लेते हैं।
दरअसल, कुंभ का अर्थ घड़ा से होता है। ऐसी मान्यता है कि कुंभ मेले का संबंध समुंद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में निकले अमृत कलश से है। घड़ा यानी कलश। मान्यता है कि देवता और असुर जब समुंद्र मंथन में सबसे अंत में निकले अमृत कलश को पाने के लिए एक दूसरे से छीनाझपटी कर रहे थे उसी समय उसकी कुछ बूंदें धरती पर गिरीं। ये तीन बूंदे थीं। इन्हीं से गंगा, यमुना और सरस्वती का प्रावहमान हुआ और यहीं से कुंभ के आयोजन की दिशा बनी। इन तीन नदियों के मिलने के जगह को संगम कहा गया और आज भी संगम के उस तट पर कुंभ का आयोजन होता है।
अर्धकुंंभ किसे कहते हैं
दोस्तों, कुंभ का अर्थ जानने के बाद चलिए सीधे हम जानते हैं कि आखिर अर्धकुंभ किसे कहते हैं। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह अर्ध यानी आधा कुंभ है। अर्धकुंभ हमेशा ही छह साल में एक बार लगता है। अर्धकुंभ भारत में कहीं नहीं लग जाता बल्कि इसके लिए सिर्फ दो जगह है। पहला हरिद्वार और दूसरा प्रयागराज। हरिद्वार और प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल पर हमेशा ही एक अर्धकुंभ लगता है। यानी जब भी आपको यह मालूम चले कि प्रयागराज या हरिद्वार में कुंभ लग रहा है और उसके बाद आप देख लीजिए कि अगला कुंभ कब लगेगा बस उसके बीच में ही 6 साल में आपको एक अर्धकुंभ मिल जाएगा।
महाकुंभ किसे कहते हैं
महाकुंभ को सबसे महान कुंभ माना जाता है। आपको अगर महाकुंभ का लाभ लेना है तो फिर आपकी जिंदगी में शायद सिर्फ एक बार ऐसा मौका मिल पाएगा। ऐसे में महाकुंभ को कोई भी खोना नहीं चाहता है। महाकुंभ के बारे में जैसे ही पता चले तुरंत उसमें शामिल होइए। ऐसा इसलिए क्योंकि महाकुंभ 144 साल में एक बार आता है। अब आप सोच लीजिए मनुष्य का जीवन ही 60-70 साल का है। तो फिर 144 साल में महाकुंभ आने का मतलब है कि सभी लोग इसका लाभ नहीं ले पाएंगे। इसलिए आपको इसके लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। महाकुंभ का आयोजन देश के किसी और हिस्से में कभी नहीं हो सकता है। महाकुंभ का आयोजन कभी भी होगा तो सिर्फ और सिर्फ प्रयागराज में वह भी संगम तट पर।
पूर्ण कुंभ क्या होता है
चलिए अब जानते हैं कि आखिर पूर्ण कुंभ क्या होता है। पूर्ण कुंभ 12 साल में एक बार लगता है। यानी अगर एक बार पूर्णकुंभ लग गया तो फिर आपको 12 साल का इंतजार करना पड़ेगा। उसके बीच आप चाहकर भी पूर्ण कुंभ के भक्ति भाव का आनंद नहीं ले पाएंगे। पूर्ण कुंभ लगता ही 12 साल में एक बार है। यह देश के 4 हिस्सों में लगता है जो कि बेहद ही अच्छी बात है। सिर्फ प्रयागराज में होने के काऱण देशभर से लोग नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे में पुण्य नहीं मिल पाता. लेकिन यह कुंभ देश में चार स्थानों पर लगकर सबको पुण्य देता है।
आपको बता दें कि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन यानी महाकाल की नगरी। इन चार जगहों पर आपको हर 12 साल में एक बार पूर्ण कुंभ का आयोजन मिलता है। एक इंसान कम से कम 4 बार चाहे तो इसके महात्म का फायदा ले सकतता है।
कुंभ मेले का आयोजन कब होता है
दोस्तों, आपने सब तो जान लिया लेकिन आप सोच रहे होंगे कि कुंभ के बारे में तो मैंने बताया ही नहीं। देखिए, कुंभ तो हर तीन साल पर आ ही जाता है। आप देखे होंगे कि अक्सर ही आपको बताया जाता है कि कुंभ का आयोजन प्रयागराज या हरिद्वार में हुआ है। तो समझ जाइए कि यह कोई और कुंभ नहीं बल्कि सिर्फ सिंपल कुंभ ही है। सिंपल कुंभ यानी ना तो ये महाकुंभ है और ना ही पूर्ण कुँभ। यह सिर्फ कुंभ है जिसका आयोजन हर तीन साल पर होता है और भक्तों का सैलाब टूट पड़ता है।
कैसे निर्धारित करते हैं कुंभ मेले की तिथि
कुंभ मेले की तिथि हमेशा ही ग्रहों और राशियों पर निर्भर करता है। इसके बारे में पंडितजी लोग जो जानकारी देते हैं उसके मुताबिक
1- जब भी बृहस्पति वृष राशि में प्रवेश करते हैं और उस समय सूर्य मकर राशि में होंगे तो फिर कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होगा।
2- अगर सूर्य मेष राशि में हैं और बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में सुनिश्चित होगा।
3- अगर सूर्य और बृहस्पति दोनों ही सिंह राशि में प्रवेश करेंगे तो नासिक में महाकुंभ मेले का आयोजन होगा।
4- इसी तरह से अगर बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में जाएंगे तब कुंभ का आयोजन हमेशा ही उज्जैन में होगा। इसका ध्यान रखिए।
2025 में महाकुंभ कहां लगेगा
दोस्तों, 2025 के जनवरी में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में होगा। 13 जनवरी से इसकी शुरुआत होगी. इससे पहले महाकुंभ का आयोजन 2013 में प्रयागराज में हुआ था। ऐसे में 12 साल बाद यह महाकुंभ लग रहा है। माना जा रहा है कि 25 करोड़ से ज्यादा लोग इस महाकुंभ का हिस्सा होंगे।
श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए जबरदस्त व्यवस्था की गई है। डूबने से बचाने के लिए जल पुलिस के साथ ही अंडरवाटर ड्रोन भी तैनात हैं। ये ड्रोन 300 मीटर के दायरे में किसी भी डूबते व्यक्ति को खोज लेंगे। महाकुंभ में भीड़ नियंत्रित करने के लिए पार्किंग व्यवस्था शहर से बाहर रहेगी। यह बहुत ही शानदार तरीके से पहल की गई है। माना जा रहा है कि इस बार किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होगी।