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नॉनवेज…मंदिर…मस्जिद: साजिश बोने वाले कामयाब होना चाहते हैं, आप मौन क्यों हैं…

नॉनवेज…मंदिर…मस्जिद। ये उस देश के सबसे बड़े मुद्दे आज बन गए हैं, जो देश कभी दुनिया का विश्वगुरु रहा है। वह देश जो दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वह देश जो मॉडर्न दुनिया का सबसे बड़ा ब्रैंड है, उस भारत देश में नॉनवेज…मंदिर…मस्जिद पर हो हल्ला हो रहा है। क्या हो गया है अपने देश को…। आखिर किसकी नजर लग गई है। निश्चित रूप से यह सवाल आपके जेहन में भी आ रहा होगा। तो चलिए आज इस पर विस्तार से बात करते हैं।

मुख्य मुद्दे क्यों पीछे छूट गए हैं

बातें जहां विकास की होनी चाहिए। रोजगार की होनी चाहिए। गरीबी हटाने की होनी चाहिए, वहां बोटी की बात हो रही है। वहां लाउडस्पीकर की बात हो रही है। वहां मंदिर और मस्जिद के मुद्दे ज्यादा हावी हो गए हैं। ऐसा समाज क्यों बन गया है। क्यों आज के युवाओं को भी समझ नहीं आ रहा है कि इन मुद्दों में कुछ भी नहीं रखा है। आखिर क्यों युवा भटक गए हैं। क्यों उन्हें रोजगार से अधिक चिंता कहीं लाउडस्पीकर पर तेज आवाज की है। क्यों उन्हें कॉलेज में अच्छी शिक्षा की बजाए मेस में क्या खाना मिल रहा है, उस पर अधिक नजर है।

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क्या देश के युवा भ्रमित हो गए हैं या उन्हें बरगलाया जा रहा है

अब एक सवाल यह भी है कि क्या देश के युवा भ्रमित हो गए हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वास्तव में इस देश को किधर लेकर जाना है। वे अपनी ऊर्जा गलत जगह पर जाया कर रहे हैं। या फिर उन्हें बरगलाकर कुछ लोग अपना हित साधने में लगे हैं। यह इसलिए भी क्योंकि आप देखिए आज सोशल मीडिया पर युवाओं की एक बड़ी फौज मिल जाएगी जो इस तरह के मुद्दों पर अधिक मुखर दिख रहे हैं जबकि जो चीजें उनके करियर से जुड़ी हैं या उनके जीवन को सफल बनाने वाली हैं, उन मुद्दोंं पर चर्चा बिल्कुल गायब है।

बोटी, मस्जिद-मंदिर इतने प्रासंगिक क्यों हो गए

धर्म को अपनाना बुूरी बात नहीं है लेकिन धर्म को लेकर कट्टर हो जाना ठीक नहीं है। अगर कट्टर हैं भी तो किसी अन्य के लिए दिक्कत न पैदा करें। आज देश में क्या हो रहा है। कोई मस्जिद वाला है तो वह मंदिर का विरोधी हो गया है तो कोई मंदिर वाला मस्जिद का। यही वजह है कि आपको रामनवमी में जहां एक तरफ मंदिरों के बाहर उपद्रव देखने को मिला, वहीं कुछ जगहों से यह भी चीजें सामने आईं कि मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकर को लेकर बवाल काटा जा रहा है। जेएनयू में तो फलाने दिन मांसाहार नहीं मिलना चाहिए,. इस बात को लेकर दो गुट भिड़ गए। अब सोचिए कि बौद्धिक स्तर हमारा किस कूड़ेदान में जा रहा है।

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समाज में खाई पैदा करने की कोशिश तो नहीं?

जब माहौल ऐसा हो तो कई तरह के सवाल भी सामने आते हैं। इनमें से एक सवाल यह भी है कि क्या समाज में दो वर्गों के बीच कुछ लोग खाई पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। आखिर आज से पहले इस तरह के मामलों में ऐसा बवाल तो नहीं मचा। जेएनयू में पहले भी मांस इस दिन पर बनता रहा है। मस्जिदों में लाउडस्पीकर बजते रहे हैं। मंदिरों में भजन होता रहा है। सभी लोग मिलजुलकर रहते रहे हैं। आखिर अचानक से इतना बवाल क्योंं। हां, जहां तक बात है कानूनी तौर पर कि ध्वनि प्रदूषण के कारण लाउडस्पीकर पर रोक लगना है या आवाज कम करना है तो वह अलग मैटर है। वह हस्तक्षेप तो जरूरी भी है लेकिन इसी मामले को लेकर इस हद तक माहौल खराब हो जाना, यह संकेत तो भयावह है।

तो इस माहौल में फायदा किसको है?

हर समय समाज को बांटने वाले जब तब अपना एजेंडा सामने लाते् रहते हैं। पहले भी कई बार कोशिशें ऐसी हुईं हैं लेकिन अपना देश अनेकता में एकता वाला देश है। यहां इस तरह के छोटी सोच वाले कभी कामयाब नहीं हो पाए हैं और ना ही होंगे। अभी जो हालात हैं वह जरूर भयावह हैं लेकिन अच्छे लोगों के उठाए कदमों के आगे ये भी बौने साबित होंगे। समाज को ये बांट नहीं पाएंगे। ये अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाएंगे। अंतत जीत उन्हीं की होनी है जो देश में अमन और शांति चाहते हैं।

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(नोट- ये लेखक के अपने विचार हैं। हमारा मकसद किसी के भावनाओं को आहत करना नहीं है। आप सभी के विचारों का स्वागत है। अगर आप इस बारे में कोई भी राय रखते हैं तो टिप्पणी करके बताइए। अगर आप अपना पक्ष लिखना चाहते हैं तो हमें हमारे फेसबुक पेज पर जाकर मैसेज कर सकते हैं। लिंक है- https://www.facebook.com/BhaukaaliBaba)

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