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शीतलाष्टमी (चैत्र कृष्ण अष्टमी) कब मनाया जाता है।

शीतलाष्टमी

शीतला महामारी की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। भारत में चेचक (शीतला) का प्रकोप बड़े वेग से होता है। बचने के अनेक साधनों के होते हुए भी बहुत पहले से शीतला का पूजन व व्रत इस रोग के प्रकोप की सुरक्षा के लिए किया जाता है।

शीतलाष्टमी की पूजा विधि

चैत्र कृष्ण अष्टमी को भगवती की पूजा की जाती है। पूजन की कोई विशेष विधि नहीं है। इस दिन शीतल पदार्थों का ही भोग लगाया जाता है। भोज्य पदार्थ सप्तमी की रात को ही बनाकर रख लिए जाते हैं। इस दिन न तो सब्जी में छौंक लगाते हैं और न ही घर में आग जलाते हैं। स्त्री-पुरुष जो भी भगवती का व्रत रखता है वह दोपहर के समय भगवती पूजन के बाद कथा सुनकर दिन में एक बार भोजन करता है।

शीतलाष्टमी की कथा

एक बार एक राजा के इकलौते पुत्र को शीतला (चेचक) निकली। उन्हीं के पड़ौस में एक काछी-पुत्र को भी शीतला निकली हुई थी। काछी परिवार बहुत गरीब था पर भगवती का उपासक था। वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भली-भाँति निभाता रहा। वह घर में बहुत सफाई रखता था। भूमि को प्रतिदिन लीपता। भगवती की नित-नेम से पूजा करता। नमक नहीं खाता। सब्जी में छौंक नहीं लगाता, न कोई वस्तु भूनता। न कड़ाही चढ़ाता। गरम वस्तु न स्वयं खाता न शीतला वाले लड़के को देता। ऐसा करने से उसका पुत्र शीघ्र ही ठीक हो गया।

उधर राजा के घर जबसे लड़के को शीतला का प्रकोप हुआ तब से उसने भगवती के मण्डप में शतचण्डी का पाठ शुरू कर रखा था। रोज हवन व बलिदान होते थे। राजपुरोहित भी सदा भगवती के पूजन में निमग्न रहते। राजमहल में रोज कड़ाही चढ़ती, विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन बनते। सब्जी के साथ कई प्रकार का मांस भी पकता। भोजनों की राजकुमार का मन मचल उठता। वह भोजन के लिए जिद्द, करता। इकलौता पुत्र होने के कारण उसकी अनुचित जिद्द भी पूरी कर दी जाती। इस पर शीतला का कोप घटने के बजाय बढ़ने लगा। शीतला के साथ-साथ उसके बड़े-बड़े फोड़े भी निकलने लगे। जिनमें खुजली व जलन अधिक होती थी। शीतला की शान्ति के लिए जितने भी उपाय करते, शीतला का प्रकोप उतना ही बढ़ता जाता ।

तभी राजा को पता लगा कि काछी-पुत्र को भी शीतला निकली थी पर वह बिल्कुल ठीक हो गया है। राजा सोचने लगा, मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं। पूजा व अनुष्ठान में कोई कमी नहीं, पर मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है और काछी-पुत्र बिना सेवा-पूजा के ठीक हो गया है। इसी सोच में उसे नींद आ गई तो श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने स्वप्न में कहा कि मैं तुम्हारी सेवा-अर्चना से प्रसन्न हूँ। यही कारण है कि आज तुम्हारा पुत्र जीवित है। इसके ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया।

तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बन्द करना चाहिए। नमक से रोगी के फेफड़ों में खुजली होती है। घर की सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इसकी गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी का किसी के पास आना जाना मना है क्योंकि यह रोग औरों को भी होने का भय रहता है। सब यथाविधि समझाकर, देवी अन्तर्धान हो गई । प्रातः से ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्यों की व्यवस्था कर दी। इससे राजकुमार शीघ्र ही ठीक हो गया।

इस प्रकार इस व्रत से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शीतला रोग के समय क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए तथा भगवती पूजन किस प्रकार करना चाहिए।

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