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मत्स्य जयन्ती (चैत्र शुक्ल पंचमी)

इस दिन भगवान ने मत्स्य के रूप में प्रथम अवतार लिया था। इसी की स्मृति में मत्स्य जयन्ती मनाई जाती है। इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि करके द्वार पर भगवान मत्स्य की मूर्ति अंकित करके पूजन का विधान है। इस दिन मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाने से बड़ा पुण्य मिलता है। इस दिन भगवान मत्स्य के अवतार की कहानी सुनने तथा सुनाने से लौकिक कष्टों से छुटकारा मिलता है । इस दिन मत्स्य पुराण का पारायण करना श्रेष्ठ माना गया है।

कथा – ऐसी कथा प्रचलित है कि इस दिन राजर्षि सत्यव्रत प्रभात वेला में स्नान करके अंजलि में जल भर भगवान सूर्य को अर्घ्य देने लगे तो एक छोटी सी मछली उनकी अंजलि में आ गई। सत्यव्रत ने अंजलि का जल समुद्र छोड़ दिया। ऐसा करते ही मछली बोली, “महाराज! मेरा शरीर बहुत छोटा है। मुझे बड़ी मछलियाँ खा जाएंगी। इसीलिए मैं आपकी शरण आई थी किन्तु आपने मुझे फिर इसी जल में छोड़ दिया। ” राजर्षि में सत्यव्रत ने मछली की दैन्य भरी पुकार सुनकर उसे अपने कमण्डल में रख लिया।

मछली का शरीर बड़ी शीघ्रता से बढ़ने लगा। अब कमण्डल मछली के लिए छोटा पड़ने लगा। मछली ने राजा से स्थान परिवर्तन का अनुरोध किया। राजर्षि सत्यव्रत ने औचित्य पर ध्यान देकर उसे एक बावड़ी में डाल दिया। कुछ दिन बाद उसके लिए बावड़ी भी छोटी पड़ने लगी। ज्यों-ज्यों उसका शरीर बढ़ता गया सत्यव्रत उसे कुंड, तालाब तथा नदी में डालते गए। और अन्त में वह मछली इतनी विशालकाय हो गई कि उसे सागर में ही स्थान देना पड़ा। जब राजर्षि ने उसे समुद्र में स्थान दिया तब मत्स्य ने पुनः निवेदन किया, “यहाँ के मगर आदि जीव मुझे अपना भोजन बना लेंगे। मुझे शरणागत होते हुए आप मेरा इस प्रकार त्याग क्यों कर रहे हैं?” राजा भी अपनी भक्ति-भावना के कारण भगवद् प्राप्ति को पहुंच चुका था। उसने ‘रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव’ वाले भगवान के यथार्थ रूप को पहचान लिया। राजर्षि सत्यव्रत हाथ जोड़कर भगवान के साक्षात् दर्शन करके स्तुति करने लगे। भगवान मत्स्यावतार ने प्रसन्न होकर अपने भक्त को प्रलय से अवगत करा कर सुरक्षा का उपाय भी बता दिया।

सात दिन पश्चात् सागर का जल डोल उठा। सारी धरती जलमग्न हो गई। मत्स्यावतार द्वारा बताए गए उपाय के अनुसार जल प्रवाह पर एक नौका आई, उसी पर राजर्षि ने चढ़कर स्वयं को सुरक्षित रखा। यह नौका प्रलय काल में श्रृंग वाले उस मत्स्य से बाँध दी गई। भगवान मत्स्य ने प्रलय के जल में विचरण करते-करते राजर्षि सत्यव्रत को ज्ञान का उपदेश दिया। प्रलय के पश्चात् यही राजर्षि सत्यव्रत मनु हुए। इन्हीं भगवान मत्स्य ने हयग्रीव का प्राणान्त करके वेदों का उद्धार किया था।

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