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जीवत्पुत्रिका व्रत(आश्विन कृष्ण अष्टमी) और उसकी कथा

इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियाँ पुत्र की जीवन रक्षा के उद्देश्य से करती हैं। इस व्रत के करने से उन्हें पुत्र-शोक नहीं होता। इस व्रत का स्त्री-समाज में बड़ा महत्व तथा सम्मान है। इस व्रत को स्त्रियाँ निर्जल रहकर करती हैं। चौबीस घंटे के उपवास के बाद ही व्रत का पारण करती हैं?

सप्तमी के दिन उड़द की दाल भिगोई जाती है। कुछ लोग उसमें गेहूँ भी मिला देते हैं। अष्टमी के दिन प्रातःकाल व्रती स्त्रियाँ उनमें से कुछ दाने साबुत ही निगल जाती हैं। इसके बा न कुछ खाती ही हैं न ही कुछ पीती हैं। इस दिन उड़द तथा गेहूँ के दान का बड़ा माहात्म्य है। यह व्रत काम्य है।

कथा- (१) जीमूतवाहन नामक राजा बड़ा दयालु तथा धर्मात्मा थे। एक दिन वे पर्वत पर घूमने गये। उस पर्वत पर मलयवती नामक राजकन्या देव-पूजन के लिए आई हुई थी। एक-दूसरे को देखते ही उनके हृदय में प्रेम हो गया। परस्पर प्रेम-दर्शन का यह दृश्य राजकुमारी के भाई ने देखा था। राजकुमारी अपने भाई के साथ लौट गई।

जब जीमूतवाहन पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे तब उन्हें अचानककिसी के रोने की आवाज सुनाई दी। वे उस आवाज की ओरचल दिये। थोड़ी दूर जाकर उन्होंने देखा कि शंखचूड़ साँप कीमां रो रही है। उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा तो ज्ञात हुआकि उसका एकमात्र पुत्र आज गरुड़ के भोजन के लिए जाने वालाहै। जीमूतवाहन का हृदय द्रवित हो गया। वे स्वयं गरुड़ के भोजन के लिए नियत स्थान पर जाकर लेट गये।नियत समय पर आकर गरुड़ ने जीमूतवाहन पर चोंच से प्रहार किया किन्तु वे शान्त भाव से पड़े रहे, हिले नहीं।

गरुड़ को आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा- “यह कौन पड़ा है जब गरुड़ ने उसे खाना बन्द कर दिया तो जीमूतवाहन ने पूछा, “आपने खाना बन्द क्यों कर दिया? मेरी नसों में अब भी रक्त प्रवाहित हो रहा है। मेरे शरीर में मांस है। लगता है अभी तुम्हारी भूख मिटी नहीं।गरुड़, जीमूतवाहन को पहचान कर पश्चाताप करने लगा।

गरुड़ ने शान्त भाव से सोचा-यह तो दूसरे के लिए प्राण दे रहा है और एक मैं हूँ कि प्रतिदिन अपनी भूख मिटाने के लिए दूसरों की जान लेता हूँ। इस प्रकार अनुताप करते हुए गरुड़ ने अपने कलंकित रूप के दर्शन किये। गरुड़ ने अपने पापों का प्रायश्चित-सा करके राजा से वर मांगने को कहा। राजा ने कहा, “आज तक आपने जितने साँप मारे हैं उन सबको जीवित करके भविष्य में साँप न खाने की प्रतिज्ञा कीजिए। गरुड़ ने ‘तथास्तु’ कहकर अपना धर्म निभाया ।जब यह घटना घटी उसी समय राजकुमारी का पिता तथा भाई जीमृतवाहन की खोज करते करते वहां पहुँचे। उन्होंने राजकन्या का विवाह उनसे कर दिया। उस दिन आश्विन कृष्णाष्टमी थी।

कथा – (२) महाभारत के युद्ध के पश्चात् पांडवों की अनुपस्थिति में कृत वर्मा तथा कृपाचार्य के साथ अश्वत्थामा शिविर में प्रवेश करके सैनिकों को मार डाला। अश्वत्थामा ने ने सोए हुए द्रौपदी पुत्रों को पांडव समझा और उनके सिर काट लिये।

दूसरे दिन अर्जुन ने केशव को सारथि बनाकर अश्वत्थामा का पीछा किया और बन्दी बनाया। धर्मराज युधिष्ठिर के आदेश तथा श्रीकृष्ण के परामर्श से सिर की मणि लेकर तथा केश मूंडकर गुरुपुत्र को बन्धन से छुड़ा दिया। अश्वत्थामा ने अपमान का. बदला लेने के भाव से अमोघ अस्त्र का प्रयोग पांडवों की वंशधर उत्तरा के गर्भ पर किया।

पांडव उस अस्त्र का प्रतिकार न कर सके। उन्होंने केशव की शरण पकड़ी। भगवान ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके गर्भ की रक्षा की। किन्तु जब पुत्र पैदा हुआ तो वह मृतक प्रायः था। भगवान ने उसे प्राण दिया। वही पुत्र पांडव वंश का भावी कर्णधार परीक्षित हुआ। परीक्षित को इस प्रकार जीवनदान देने के कारण इस व्रत का ‘जीवत्पुत्रिका’ पड़ा है। उड़दों का निगलना श्रीकृष्ण का सूक्ष्मरूप में उदर प्रवेश माना जाता है।

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