इस दिन पर्वतराज कुमारी पार्वती ने अवतार लिया था। कुछ लोगों का मत है कि गौरी का जन्म ‘ज्येष्ठशुक्ला’ तृतीया को हुआ था। पार्वती जी ने पतिव्रत धर्म का आदर्श नारी समाज को दिया है इस दिन कुमारियाँ तथा सुहागनें पार्वती जी की गोबर निर्मित प्रतिमा का पूजन करती हैं। नवरात्रों के पश्चात् इसी दिन दुर्गा का विसर्जन किया जाता है, इसीलिए इसे ‘दुर्गाष्टमी’ भी कहा जाता है। इस पर्व पर नवमी के प्रातःकाल देवी का पूजन होता है। अनेक पकवानों से दुर्गा को भोग लगाया जाता है। पार्वती जी के निमित्त व्रत करने वाली स्त्रियों को पति-सेवा का भाव नहीं भूलना चाहिए। इस व्रत के करने की सार्थकता भी इसी में है।