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धनतेरस क्यों मनाते है | धनतेरस (कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी)

इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। इस दिन यम के लिए आटे का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। रात को औरतें दीपक में तेल डालकर चार बत्तियाँ जलाती हैं। जल, रोली, चावल, गुड़ तथा फूल आदि से नैवेद्य सहित दीपक जलाकर यम का पूजन करती हैं।

धनतेरस की पूजा का महत्व

इस दिन धन्वतरि के पूजन का भी विशेष महत्व है। इस दिन के पुराने बर्तनों को बदलना व नये बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। चाँदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य का लाभ होता है। इस दिन हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा लगातार तीन बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुंकुम लगाना चाहिए। कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गोशाला, बावली, कुंआ, मंदिर आदि स्थानों में तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए। तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी तथा अमावस्या की संध्या को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

धनतेरस की कथा

एक बार यमराज ने अपने दूतों से प्रश्न किया – “क्या प्राणियों के प्राण हरते समय तुम्हें किसी पर दया भी आती है?” यमदत संकोच में पड़कर बोले, “नहीं महाराज! हम तो आपकी आज्ञा का पालन करते हैं। हमें दया भाव से क्या प्रयोजन?’ यमराज ने फिर प्रश्न दोहराया ‘संकोच मत करो। यदि कभी कहीं तुम्हारा मन पसीजा है तो निडर हो कर कह डालो।” तब यमदूतों ने कहा, “सचमुच एक घटना ऐसी घटी है

जब हमारा हृदय कांप गया। हंस नाम का राजा एक दिन शिकार के लिए गया। वह जंगल में अपने साथियों से बिछुड़ कर भटक गया और दूसरे राजा की सीमा में चला गया।

वहाँ के शासक हेमा ने राजा हंस का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन राजा हेमा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक विवाह के चार दिन बाद मर जाएगा। राजा हंस के आदेश से उस बालक को यमुना के तट पर एक गुहा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा गया। उस तक स्त्रियों की छाया भी न पहुँचने दी। किन्तु विधि का विधान तो अडिग होता है। संयोगात् एक दिन राजा हंस की राजकुमारी यमुना के तट पर निकल गई और उसने उस ब्रह्मचारी बालक से गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन आया और राजकुंवर मृत्यु को प्राप्त हुआ। उस नव परिणीता का करुण-बिलाप सुन कर हमारा हृदय कांप गया ऐसी सुन्दर जोड़ी हमने कभी न ही देखी थी। वे कामदेव तथा रति कम न थे। इस युवक को काल-ग्रस्त करते समय हमारे अश्रु भी थम न पाए थे।

यमराज ने द्रवित होकर कहा, “क्या किया जाए? विधि के विधान की मर्यादा हेतु हमें ऐसा अप्रिय कार्य करना पड़ा। तब दूत के पूछने पर यमराज ने अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा, “धनतेरस के पूजन एवं दीपदान को विधिपूर्वक पूर्ण करने अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है। जहां-जहां जिस-जिस घर में यह पूजन होता है वहां अकाल का भय पास नहीं फटकता। इसी घटना से धनतेरस के दिन धन्वतरि पूजन सहित दीपदान की प्रथा का प्रचलन हुआ।

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