Site icon KyaHotaHai.com

अन्नकूट-गोवर्धन पूजा और उसकी कथा | annakut gowardhan puja katha

गोवर्धन पूजा के बारे में बताइए, annakut gowardhan puja katha, अन्नकूट क्या होता है

annakut gowardhan puja katha: कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा होती है। वेदों में इस दिन इन्द्र, वरुण, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। अन्न कूट या गोवर्धन की पूजा का आज जो विधान है वह भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग में आरम्भ हुआ है। उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा करते थे। 56 प्रकार के भोजन बना कर तरह-तरह पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था। ये पकवान तथा मिठाइयाँ इतनी अधिक मात्रा में होती थीं कि इनका पूरा पहाड़ ही बन जाता था।

अन्नकूट गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है

अन्नकूट में चन्द्र दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीय हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन प्रातः तेल मल कर स्नान करना चाहिए। पूजन का समय कहीं प्रातःकाल है तथा कहीं दोपहर को गाय, बैल आदि पशुओं को स्नान कराया जाता है। उनके पैर धोए जाते हैं। फूल, माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिष्ठान्न खिला कर उनकी आरती करके प्रदक्षिणा ली जाती है। कई तरह के पकवानों का पहाड़ बना कर बीच में श्रीकृष्ण की मूर्ति रख कर पूजा की जाती है। कहीं कहीं गोबर से गोवर्धन व कृष्ण की मूर्ति बना कर भी पूजा की जाती है। इस दिन सन्ध्या समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। । पूजन के बाद अन्नकूट की कथा भी सुननी चाहिए।

अन्नकूट-गोवर्धन पूजा कि कथा इस प्रकार है

एक बार महर्षि ने ऋषियों से कहा कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन व अन्नकूट की पूजा करनी चाहिए। ऋषियों ने महर्षि से पूछा – अन्नकूट क्या है? गोवर्धन कौन हैं? इनकी पूजा क्यों तथा कैसे करनी चाहिए? इसका क्या फल होता है? इस सब का विधान विस्तार से कहकर कृतार्थ करें।

महर्षि बोले- एक समय की बात है भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएँ चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा कि हजारों गोपियाँ गोवर्धन पर्वत के पास ५६ प्रकार के भोजन रखे बड़े उत्साह से नाच गा कर उत्सव मना रही थीं। श्री कृष्ण ने इस उत्सव का प्रयोजन पूछा तो गोपियाँ कहने लगीं कि आज तो घर घर में उत्सव होगा क्यों कि वृत्रासुर को मारने वाले मेघों व देवों के स्वामी इन्द्र का पूजन होगा। यदि पूजा से वे प्रसन्न हो जाएं तो ब्रज में वर्षा होती है जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। कृष्ण बोले- यदि देवता प्रत्यक्ष आ कर भोग लगाएँ तब तो तुम्हें यह उत्सव जरूर करना चाहिए। इतना सुन गोपियाँ कहने लगीं कि देवराज इन्द्र की इस प्रकार निन्दा नहीं करनी चाहिए। यह तो इन्द्रोज नामक यज्ञ है। इसी के प्रभाव से अतिवृष्टि तथा अनावृष्टि नहीं होती। कृष्ण बोले- इन्द्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इन्द्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करनी चाहिए। काफी वाद-विवाद के बाद श्रीकृष्ण की बात ही मानी गई तथा ब्रज में इन्द्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन की पूजा शुरू की गई। सभी गोप-ग्वाल अपने-अपने घरों से पकवान ला लाकर गोवर्धन की तराई में जा श्रीकृष्ण की बताई विधि से पूजन करने लगे। उधर कृष्ण ने अपने आधिदैविक रूप से पर्वत में प्रवेश कर के ब्रजवासियों द्वारा दिए गए सभी पदार्थों को खा लिया तथा उन सब को आशीर्वाद दिया। सभी गोपाल अपने यज्ञ को सफल जान कर बड़े प्रसन्न हुए।

नारद मुनि इन्द्रोज-यज्ञ देखने की इच्छा से ब्रज गाँव में आए। तो इन्द्रोज-यज्ञ के स्थगित होने तथा गोवर्धन पूजा का समाचार मिला। इतना सुनते ही नारद इन्द्र लोक पहुँचे तथा उदास होकर बोले – गोकुल के निवासी गोपों ने इन्द्रोज बन्द करके आप से बलवान गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी है। आज से यज्ञों आदि में उसका भाग तो हो ही गया। यह भी हो सकता है कि किसी दिन कृष्ण की प्रेरणा से वे तुम्हारे राज्य पर आक्रमण करके इन्द्रासन पर भी अधिकार कर लें।

नारद तो अपना काम करके चले गए। अब इन्द्र क्रोध में लाल-पीले हो गए। अधीर हो कर उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय का-सा दृश्य उत्पन्न कर दें। मेघ ब्रज भूमि पर जा मूसलाधार बरसने लगे। तो सब गोप-ग्वाल सहम कर कृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे।

गोप-गोपियों की करुण पुकार सुन कर कृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाल पशु धन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्री कृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठा कर छाता सा तान दिया। गोप-ग्वाल सात दिन तक उसी की छाया में रह कर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं पड़ा। यह चमत्कार देखकर ब्रह्मा जी द्वारा श्री कृष्णावतार की बात जान कर इन्द्र देव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे।

श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व के रूप में प्रचलित है।

Exit mobile version