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आशामाई (वैशाख कृष्ण द्वितीया)

वैशाख कृष्ण द्वितीय को आशामाई का व्रत संतान की मंगलकामना व सौभाग्य के लिए किया जाता है। व्रत वाली स्त्री इस दिन पूजा के बाद दिन में एक बार बिना नमक का करती है। पान पर सफेद चंदन से एक पुतली का चित्र बनाकर, उस पर चार कौड़ियाँ रखकर पूजा की जाती है। । चौक पूरकर कलश स्थापित करने के बाद चौकी पर आशामाई की स्थापना की जाती है। इसके उपरान्त विधिवत् पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा की जाती है। खीर, पूरी, पुए आदि पकवान बनाए जाते हैं। ‘आसें’ (लंका के नक्शे की आकृति के पुए) पूजा के लिए विशेष रूप से बनाई जाती है। यह व्रत घर की बड़ी स्त्री ही करती है। इस व्रत में दोपहर को भोजन किया जाता है। शाम को केवल फलाहार ही किया जाता है। पुतली पर रक्षा के लिए कच्चा धागा चढ़ाया जाता है जिससे मां अपनी सन्तान की मंगलकामना करती है। पूजा के बाद नीचे लिखी कथा श्रवण की जाती है

कथा – एक राजा का एक राजकुमार था। इकलौता होने के कारण बड़ा ही शरारती हो गया था। वह अक्सर पनघट पर बैठ जाता तथा जल भरने आई स्त्रियों के घड़े गुलेल से ढेला फैंक कर तोड़ देता। सभी उसके व्यवहार से परेशान हो राजा के पास शिकायत करने पहुँचे। राजा ने कहा, ‘कोई भी घड़ा लेकर पानी भरने न जाए। सभी स्त्रियाँ तांबे व पीतल के बर्तन लाने लगीं पर राजकुमार अपनी हरकतों से बाज न आया। अब वह उनके बर्तनों को उलटाकर पानी बिखेर देता। बर्तनों को भूमि पर फेंकता, इससे बर्तन टेढ़े-मेढ़े हो जाते, पिचक जाते। जनता फिर राजा के पास शिकायतों का पुलिंदा लेकर गई। राजा ने प्रजा को किसी प्रकार समझा-बुझाकर वापिस भेजा तथा स्वयं सोचने लगे कि राजकुंवर की शरा यदि इसी प्रकार रहीं तो प्रजा राज्य छोड़ चली जाएगी। बहुत सोच-विचार के बाद एक दिन राजकुमार जब शिकार खेलने गया था तो राजा ने अपने हस्ताक्षरों से युक्त एक आज्ञा पत्र फाटक पर टांग दिया, जिसमें राजकुमार को देश निकाले का आदेश था। आज्ञा-पत्र पढ़कर वह अपने घोड़े पर सवार होकर जंगल की तरफ लौट चला। जंगल में एक जगह चार बूढ़ी स्त्रियाँ बैठी थीं। दैवयोग से उसका चाबुक वहाँ गिर गया। वह चाबुक उठाने के लिए घोड़े से उतरा तथा चाबुक उठाकर फिर घोड़े पर सवार हो गया तो वे चारों स्त्रियाँ यह समझीं कि राजकुमार ने उन्हें प्रणाम किया है।

वे उससे पूछने लगीं कि तुमने किसको प्रणाम किया है तो राजकुमार ने कहा, “तुममें जो सबसे बड़ी है, मैंने उसे ही प्रणाम किया। ” तो वे कहने लगीं, “अवस्था में हम बराबर हैं। राजकुमार ने एक स्त्री से उसका नाम पूछा तो वह बोली, “मेरा नाम भूखमाई है। ” राजकुमार ने कहा- “तुम्हारा कोई खास लक्ष्य नहीं। भूख रूखे-सूखे टुकड़ों से भी मिट जाती है। तथा ५६ प्रकार के भोजन से भी मिट जाती है। मैंने तुम्हें प्रणाम नहीं किया।

दूसरी स्त्री से उसका नाम पूछा तो उसने कहा कि मुझे प्यासमाई कहते हैं। तो राजकुमार बोला- “तुम भी भूखामाई की तरह हो। प्यास गंगाजल से भी शांत हो जाती है और प्रोखर के गन्दे पानी से भी। मैंने तुम्हें प्रणाम नहीं किया । “

तीसरी स्त्री ने अपना नाम नींदमाई बताया। तो राजकुमार कहने लगा -तुम भी लक्ष्य रहित हो। पुष्पों की शैय्या की तरह ही पत्थरों पर भी नींद आ जाती है। मैंने तुम्हें भी प्रणाम नहीं किया।”

चौथी स्त्री ने अपना नाम आसमाई बताया तो राजकुमार बोला— “ये तीनों मनुष्यों को व्याकुल कर देती हैं। तुम उन्हें शांति प्रदान करती हो। मैंने किसी और को नहीं तुम्हें ही प्रणाम था।

आसमाई यह सुन बड़ी प्रसन्न हुई तथा उसे चार कौड़ियाँ देकर बोली कि जब तक ये तुम्हारे पास रहेंगी तुम्हें कोई भी युद्ध व जुए में हरा नहीं सकता। जो कार्य करोगे उसी में सफलता मिलेगी। तुम्हारी इच्छित वस्तु तुम्हें मिल जाएगी। राजकुमार चल पड़ा। घूमते-घूमते एक राजा की राजधानी में पहुँचा। राजा को जुआ खेलने का बड़ा शौक था। राजा के नौकर भी इस व्यसन से न बच सके। राजा का धोबी जिस घाट पर राजा के कपड़े धो रहा था, वहीं राजकुमार घोड़े को पानी पिलाने के उद्देश्य से आया तो धोबी कहने लगा, पहले मेरे साथ जुआ खेलो, जीत गए तो राजा के कपड़े भी ले जाना और घोड़े को पानी भी पिला लेना। हार गए तो घोड़ा यहीं छोड़ जाना और उसे मैं पानी खुद पिला लूंगा। वह जुआ खेलने लगा। आसमाई की कृपा से जीत गया। पर राजकुमार ने शर्त के अनुसार राजा के कपड़े नहीं लिए, बस घोड़े को पानी पिलाकर चल दिया।

धोबी ने राजा से कहा कि मैंने जुए का एक ऐसा खिलाड़ी देखा है जिसे हराना सरल नहीं। राजा की इच्छा उससे जुआ खेलने की हुई। राजा ने उसे बुलाया और जुआ खेलने लगे। थोड़ी ही देर में राजा अपना राज-पाट, धन-दौलत सब कुछ हार गया। दरबार के कुछ सदस्य राजा से कहने लगे- इसे मरवा दो। राजा का एक बूढ़ा मंत्री था। उसने सलाह दी कि राजकुमारी का इसके साथ विवाह कर दिया जाए तो लड़का अपना ही हो जाएगा।

राजा ने बूढ़े की बात मान ली। राजकुमारी का विवाह उसके साथ कर दिया। अलग महल भी उनके रहने को दे दिया। राजकुमारी बड़ी सदाचारिणी थी। यहाँ उसकी सास-ननदें तो थीं नहीं, उसने कपड़े की गुड़िया बना ली तथा प्रतिदिन प्रातः उन्हें सास-ननद मानकर उनके पैर छूती ।

एक दिन राजकुमार ने उसे गुड़ियों के पाँव छूते देखकर पूछा तो राजकुमारी ने सारी बात बता दी। तब राजकुमार कहने लगा कि गुड़ियों के चरण छूने की क्या जरूरत, हमारे परिवार में तो सभी हैं। तुम्हारी इच्छा हो तो पिता जी से आज्ञा ले लो। राजकुमारी ने पिता की आज्ञा ली। पिता ने यात्रा का पूरा प्रबन्ध करके बेटी को विदा किया। सेना सहित जब राजकुमार अपने राज्य के निकट पहुँचा तो प्रजा ने सोचा कि कोई राजा हमारे राज्य पर आक्रमण करने आया है। राजा-रानी तो पुत्र वियोग में रो-रोकर अन्धे हो गए थे। राजा को जब आक्रमण की सूचना मिली तो वे स्वयं ही बिना लड़े राज्य त्यागने की इच्छा से आक्रमणकारी राजा के पास जाने को तैयार हुए। परन्तु पुत्र के लौटने का समाचार पाकर उनकी आंखों की रोशनी वापिस आ गई। रानी ने विधिपूर्वक पुत्र व पुत्र-वधु को महल में प्रवेश कराया। महल में बहू ने सास-ससुर के चरण छुए तथा आशीर्वाद लिया। कुछ दिनों बाद बहू के गर्भ से एक सुन्दर बालक ने जन्म लिया। इस प्रकार जिस राज्य में राजकुमार के चले जाने के कारण अन्धकार- सा हो गया था। वहाँ आसामाई की कृपा से आनन्द छा गया। तभी से आसामाई की पूजा व व्रत का विधान है ।

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